एक उम्दा फिल्म। खूबसूरत कथा। बलराज साहनी और नूतन का दिल को छू जाने वाला अभिनय। पवित्र और मूक प्यार का मर्मस्पर्शी आदर्श। एक से एक कर्णप्रिय गाने। दिलों को सदा गुदगुदाने वाला और कहीं-कहीं आँखों को भिगो जाने वाला संगीत और तिस पर आत्मा को धो जाने वाला मन्ना डे का यह प्रेममय आध्यात्मिक गीत, जिसे शैलेन्द्र जैसे गीतकार ने परमात्मा को शायद अपनी तरफ मिलाकर लिखा था- ऐसे हीरे-मोतियों से टँकी फिल्म 'सीमा' (1955) में क्या-क्या नहीं था। स्वयं 'सीमा' शब्द का, कथानक के भीतर से, यह आशय है कि गुरु-शिष्या के प्रेम में सामाजिक मर्यादा को ही तरजीह मिली और निजी, मूक प्रेम, मन ही मन सब भुगतकर पवित्र 'सीमा' के दायरे में रह गया।
फिल्म में मोहम्मद रफी के दो गाने थे। 'कहाँ जा रहा है तू ऐ जाने वाले' और 'हमें भी दे दो सहारा कि बेसहारे हैं' पर शंकर-जयकिशन ने 'तू प्यार का सागर...' मन्ना डे से गवाया। क्यों? इसलिए कि मन्ना डे के गायन में जो सांस्कृतिक पुट है, वैराग्य है, वीरानी से भरी लोच है और ऋषि चेतना-सा आर्य-तत्व है, वही कथा और पात्र के साथ न्याय कर सकता था। गीत एक तरह से प्रार्थना और प्रणय-गीत दोनों है। आप इसे नूतन की ओर जाता हुआ इशारा नहीं बता सकते और चुप रह जाएँ तो नूतन इस पृष्ठभूमि में कहीं शामिल है!
यानी इस गीत में 'प्यार का सागर' परमात्मा भी है और जिसे चुप रहकर चाहा गया है वह भी। प्यार सागर ही तो होता है न!
लेकिन धुन और गायन से जन्मे इस प्रभाव में हम यह न भूल जाएँ कि यह तमाम असर शैलेन्द्र की कविता और जयकिशन की सिरजी हुई धुन के कारण पैदा होता है। पहले शैलेन्द्र और जयकिशन ही असल काम करते हैं। कहने दीजिए, 'तू प्यार का सागर' हमारे हिन्दी सिनेमा के पावन और अविस्मरणीय गीतों में से है और इसमें हमें मन्ना दा ही यहाँ से वहाँ तक याद आते हैं। हमारी सुबहों और शामों को बना जाने के लिए यह गीत काफी है।
पढ़िए, शैलेन्द्र की मनोरम शब्द रचना-
(सन्नाटा। और उसे बढ़ाते एकल वाद्य की गूँज और फिर जैसे सागर की अतल गहराई से निकलता मन्ना डे का गंभीर स्वर। ऐसा आभास देता जैसे प्यार-प्रार्थना का यह प्राण-स्वर दुनिया के तमाम तर्कों, मलिनताओं और स्वार्थों को दरकिनार करके निर्माल्य तथा वेदना के अछूते केंद्र से फूट पड़ा है।)
तू प्यार का सागर है, तू प्यार का सागर है तेरी एक बूँद के प्यासे हम, तेरी एक बूँद के प्यासे हम, लौटा जो दिया तूने, लौटा जो दिया तूने, चले जाएँगे जहाँ से हम, चले जाएँगे जहाँ से हम
(कोरस- तू प्यार का सागर है...हम। तू प्यार का सागर है। और आगे कोरस की गुनगुनाहट, गायक को अंतरे की लाइन देते।)
घायल मन का पागल पंछी, उड़ने को बेकरार, उड़ने को बेकरार, पंख हैं कोमल, आँख है धुँधली, जाना है सागर पार
(और आगे खूबसूरती, कि मन्ना डे 'जाना है... पार' वाली पंक्ति को खींचकर, बड़ी कसावट के साथ सम लाते हैं। बेहद मार्मिक है इतना-सा यह टुकड़ा)।
जाना है सागर पार अब तू ही इसे समझा, अब तू ही इसे समझा राह भूले थे कहाँ से हम, राह भूले थे कहाँ से हम... (कोरस- तू प्यार का... हम। तू प्यार का सागर)
इधर झूमके गाए जिंदगी, उधर है मौत खड़ी, उधर है मौत खड़ी कोई क्या जाने कहाँ है सीमा, उलझन आन पड़ीऽऽऽ उलझन आन पड़ी कानों में जरा कह दे, कानों में जरा कह दे, कि आएँ कौन दिशा से हम, कि आएँ कौन दिशा से हम
(कोरस, और इस बार साथ मुख्य गायक मन्नाडे भी- तू प्यार का सागर है तेरी एक बूँद के प्यासे हम तेरी एक बूँद के प्यासे हम। तू प्यार का सागर है, तू प्यार का सागर है)
गीत खत्म हो जाता है और कमरे में एक सन्नाटा अटका रह जाता है। दोस्तों, बिलावजह सिनेमा का एक झूठ हमें बिखेर जाता है और हम बलराज के किरदार की मौत के पहले किसी आरामकुर्सी पर उसी की तरह सोए रह जाते हैं। अमिय दा (अमिय चक्रवर्ती, निर्देशक) हम सबका नमन आपको!