तेरी याद भी पास आती नहीं

NDND
जिस दिन कुछ होता नहीं

तेरी याद भी पास आती नहीं

भाग जाती दिखकर दूर से झलकियाँ

उसे पकड़ने को मैं भागता पीछे-पीछे

कैसी नटखट कि कभी

दिन भर झूलती रहती गले से

कभी ऐसी गायब कि ज्यों

बदली की रातों का चाँद

पकड़ के कभी मरोड़ देती उँगली मेरी

कभी आती खामोशियों के पीछे छिपकर

कभी रोशनी को पता बताती

आज नहीं आई है तो सोचता हूँ

नाराज है क्या खता हुई मुझसे

मेरी दोस्त थीं, साथ चलती थी

हो कहीं अँधेरा साथ जलती थी

खाली सड़क देखता बैठा हूँ

कोई तो एतबार उसका तोड़ा होगा

कि मेले में छूट गई उँगली उसकी

मैं दीवानावार उसको ढूँढता हूँ।

साभार- प्रगतिशील आकल्प

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