मौत को देखा है सिसकते हुए,
देखा है वटवृक्ष को निढाल होते हुए।
जिसकी छत्रछाया में पनपे सभी,
उनके लिए आंसू बह निकले।
एक-एक आंसू है उनकी यादों के,
वो उनकी हर बातों को कह निकले।
कुछ तो बात होगी शख्स में,
हर उम्मीद पर वो खरा उतरा।
जब-जब परखा सबने,
साहित्य के जौहरी का न रहना।
परख की बेबसी अब सबके सामने,
खड़ी है पोखरण की तरह।
मृत्यु भी तो अटल सत्य है,
मगर आत्मा अजर-अमर।
वो है देश के आसपास,
जब कभी पोखरण पर आएगा संकट।
हमारा विश्वास सदा अटल रहेगा,
देश सुरक्षित हम सुरक्षित।
इसे समझ सकते,