लाकर दे मुझको तुम नया चोला।
जिसको पहनकर बाहर मैं जाऊं,
मुहल्ले के बच्चों के संग दिवाली मनाऊं।
दिवाली दिवाला निकालने लगी है,
गैस के सिलेंडर में जलने लगी है।
ऐसे में दिवाली बनी है सौतन,
जिसे घर से दूर रखती है बेचारी।
तुमसे है हमारी यह विनती,
कभी मत जलाना दिवाली की बत्ती।
दिवाली जो छीने मुंह का निवाला,