वर्तमान परिस्थितियों पर कविता : आजादी जो हम में थी....

आजादी जो हम में थी, वह मैं में सिमट गई है,
अपराधी के कर में भइया, बाजी पलट गई है!
 
कामी, लोभी, लंपट है, सरकार चलाने वाले,
धर्मगुरु हैं व्यस्त रेप में, संस्कृति कौन संवारे।
 
अब घर में हम नहीं सुरक्षित, क्या बाहर की बात करें,
बात-बात पर चलती गोली, किसका हम सम्मान करें।
 
रेप, डकैती, हत्या, चोरी, होते सारे दिन में,
सीना ताने घूम रहे वह, छुपे हुए हम बिल में।

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