कुछ तो
उन औरतों के लगते हैं
जो परतंत्रता से हांफ के भाग रही होंगी
बाल उसके हब्बा ने भींच रखे होंगे
उसके वक्षों को शैतान ने जकड़ा होगा
और वह बदहवास दौड़ रही होगी
तभी निशान इतने गहरे, अमिट और वीभत्स हैं।
अस्तित्व के खतरे से डरा हुआ
आग की खोज में निकला होगा
तभी निशान इतने सजीव, मूर्त और अडिग हैं।
घाटी, प्रपातों, पहाड़ों से गिरी और फिर उठी हो
अनगिनत पेड़-पौधे उसके उदर से जन्मे हों
तभी निशान इतने कोमल, सुन्दर और स्वेत हैं।
जिसके सर पर नवनिर्माण का भूत सवार हो
और खुद को वर्तमान का पुरोधा समझता हो
तभी तो निशान इतने क्रूर, वहशी और नृशंस हैं।