दुर्गा मां पर हि‍न्दी कविता

यहां पर रखी मां हटानी नहीं थी
झूठी भक्ति उसकी दिखानी नहीं थी
 
चली आ रही शक्ति नवरात्रि में जब
जला ज्योति की अब मनाही नहीं थी
 
करे वंदना उसी दुर्गे की सदा जो
मनोकामना पूर्ण ढिलाई नहीं थी
 
चले जो सही राह पर अब हमेशा
उसी की चंडी से जुदाई नहीं थी
 
कपट, छल पले मन किसी के कभी तो 
मृत्यु बाद कोई गवाही नहीं थी
 
सताया दुखी को किसी को धरा पर
कभी द्वार मां से सिधाई नहीं थी
 
चली मां दुखी सब जनों के हरन दुख
दया के बिना अब कमाई नहीं थी
 
भवानी दिवस नौ मनाओ खुशी से
बिना साधना के रिहाई नहीं थी

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