जीवन की सचाई से रूबरू कराती कविता : जुदाई...

सम्मान है नहीं जीवन में बच्चों के, बड़ों के लिए,
अब बिना सम्मान ही किसी तरह जा रहे हैं जिए।
 
 

 

 
 
हालत अभी से ही है इतनी मुश्किल मेरे खुदा,
होना चाहते हैं बच्चे अभी से मां-बाप से जुदा।
 
चाहिए उनको इस छोटे मोड़ पर अपनी आजादी,
असहज इतने हैं कि नहीं है उनकी अब कोई दादी।
 
नहीं चाहते वो अब बंधन और हर बात पर टोकना उनको,
बोझ है वो जो पालते-खिलाते-सिखाते लड़ाते थे जिनको।
 
बड़े तो बड़े हैं दिल इतना बड़ा उनका मानेंगे बात है जो उनकी,
समाज में क्या वो जान पाएंगे बड़ों के बिना सच्चाई जीवन की।

 
 

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