हिन्दी कविता : मौत पर दुःख की अभिव्यक्ति

बधाई हो, तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है,
यह सुनकर हरेक पिता के पोर-पोर में
एक अनचाही खुशी की उमंग दौड़ पड़ती है
और वह जीवन में पहली बार
पति से पिता बन जाता है।
तब उसके हृदय में 
फूट पड़ता है गीतों का झरना
और आंखों में तैरती है
वात्सल्य, स्नेह की सरिता
जो शिशु को अधीरता के साथ देखने
और प्रेमांकन करने को आकुल होता है।
उसके कान लगे होते है
शिशु की मधुर किलकारियां सुनने को
पिता का अनुराग उमड़ पड़ता है शिशु पर
इस तरह दुनिया में चल पड़ता है
एक अनिर्वचनीय प्रेम गान
गाना, गुनगुनाना, रोना और नाचना।
न जाने कितने आयाम लिए
सांझ-संकारे शुरू हो जाती है 
जीवन की बलखाती ये प्रेमभरी अंगड़ाईयां।
पति खो जाता है पत्नी में,
पत्नी खो जाती है पति के प्रेम में
कई भीनी-सुहानी मधुर रातों-बरसातों 
और बदलते मौसमों के बाद 
जब सुनने को मिलती है यह खबर
बधाई हो, तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है।
पल-पल उम्र के साथ बडे़ होते शिशु पर
फिर बेशुमार सुखों की फुहारे
स्नेहमयी वात्सल्य चान्दनी
और लोरियों के साथ सुलाती है मां
अपने गीले आंचल में समेट कर
एक आशा संजोए सूखे में सुलाती है। 
बच्चे की किलकारियां
फूलों की मादकता लिए 
सारे परिवार की अंजलि में समेट ली जाती है।
कई दिन-रात, दिन-महिने और बरस के बाद
अपार तकलीफे-उपचार, निदान के पश्चात
मधुर भीनी सी खुशबू
शिशु से तरूण के रूप में 
माता-पिता और परिवार को मिलती है।
न जाने कितने दौर
बहन-भाई, बेटा बेटी
मां-बाप, गुरु-मित्र के रिश्ते 
और आसपास के पड़ोसियों का संसार
चारों और धाराप्रवाह मौजूद होता है
और जीवन कभी निरीह, असहाय
बाधाओं का जंजाल लिए
प्रार्थनाओं या आवश्यकता सा
विकृत, कामुक और कुण्ठित सा
यहां-वहां बिखरा होता है।
अकस्मात अपने युवा पुत्र की 
दुर्घटना से दर्दनाक मृत्यु की खबर
जब घर पहुंचती है 
तो कितना आत्मघाती होता है वह पल
जिसे सुनकर पिता खुद बन जाता है एक जिंदा ताबूत
परिवार में पसर जाता है, मौत सा सन्नाटा।
जब पिता को यह खबर मिले,
कि उसका बेटा नहीं रहा
आहिस्ता-आहिस्ता बेटे के लिए 
पल पल मरता उसका पिता
और पूरा परिवार मानो मर ही जाता है 
स्याह काली रात में बेटे का शव 
घर पहुंचते ही कोहराम मच जाता है 
आंखें भूल जाती है रोना?
दिल चीत्कार उठता है
भावनाएं तिक्त हो जाती है
और दुखों से लिप्त उस परिवार के प्रति
मैं एक पड़ौसी की शकल में
रात की खामोशी तोड़ती 
परिजनों की दुखभरी चीत्कारों से टूट जाता हूं।।
मेरा दिल और जेहन,
मुझे झकझोर कर रख देता है
खामोशी मृत्युपाश में बंधी 
मेरे मन की दीवारों को हिलाती है
और मैं मौत की अभिव्यक्ति के लिए 
तलाशता हूं कोई शब्द या उपमा
जो मैं अपने पड़ौसी की मृत्यु पर समर्पित कर सकूं। 
गमगीन रूदन कोलाहल के बीच
दिल रोने को करता है
किन्तु ये कमबख्त आंखें
आंसू टपकाने से बचती है
जिसमें मेरे पड़ौसी भले मुझे पत्थरदिल समझे
ऐसे में मेरा अंतरमन खो जाता है
गमों में अपने आंसू तलाश करने
तब समझता हूं रो देना कितना दुविधाभरा है
पर 'पीव' रो न सकना मन की बेबसी है। 

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