एक पलक बिसरै नहीं, जो गुण होय सरीर।।
किसी कारणवश गुरु काशी में निवास करते हों और शिष्य समुद्र के किनारे। कहने का तात्पर्य ये है कि शिष्य गुरु से कितनी भी दूर क्यों न हो, वह उनके बताए हुए मार्ग पर ही चलता है। सच्चा शिष्य वही है, जो गुरु के बताए हुए ज्ञान को कभी भूले नहीं। यदि गुरु में कोई कमी रहती है तो भी वही उनके गुणों को स्मरण करता रहे।