जलमय सागर का उर जलता
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहंस-विहंस मेरे दीपक जल!
द्रुम के अंग हरित कोमलतम;
अमिट चित्र अंकित करता चल!
सरल-सरल मेरे दीपक जल!
तू जल-जल जितना होता क्षय,
वह समीप आता छलनामय;
मधुर मिलन में मिट जाता तू
उसकी उज्ज्वल स्मित में घुल खिल!
मंदिर-मंदिर मेरे दीपक जल!