अन्ततः सख्त सजा हुई आसाराम को।
संत समाज पर घोर लांछन को, बदनाम को।।
प्रवचनकार खुद भूला जघन्य दुष्कर्म के अंजाम को।
सफेद दाढ़ी, श्वेत वस्त्र पर कालिख भरे इल्जाम को।।
क्षमा नहीं है नियति में अपकर्म की।
ऊंगलियां उठ रही हैं जाने कितने महंतो पर ।।
बदनाम हो रहा धर्म, विश्वास खो रहा युवाओं का,
कोई रोक नहीं है धार्मिक आवरणों में पाखंडी चोंचलों मनगढ़ंतों पर।।
धार्मिक विश्वासों के युगीन स्तंभ धराशायी हैं ।
आध्यात्मिक आस्थाओं के अस्तित्व पर बन आई है ।।2।।
भोले अनुयायी हैं ठगे से, जानकार खिन्न हो रहे हैं।
पाखंडी चोंचलेंबाज वितृष्णा के बीज बो रहे हैं।।
परंपरागत आस्थाएं खो रही हैं विश्वसनीयता अपनी,