तुम्हारी आश्वस्ति से नींद पाती है दिनभर कमाई थकान।
सर्द हवाएं ओढ़ती हैं तुम्हारे गीत चुन्नी और दुशाले की तरह
तुम्हारी लोरियों की छांव में सुस्ताती है धूप अपना अंगूठा मुंह में लिए
स्वरों की तुम्हारी ओट लेकर बारिश निचोड़ती है अपना पल्लू
कुछ यूं महकती हो तुम किसी खुशगवार मौसम की तरह।
संवरती है पूजा तुमसे, बढ़ती है तुमसे प्यास
रात की चुहल से तंग नक्षत्र उतरते हैं आकाश से सुनने तुम्हें
तुम हो तो बची हैं सुर्खियां, बचे हैं जयगीत