कविता : पूरब से पश्चिम तक मोदी-मोदी
लीजिए बज उठा दिग-दिगंत में, विजय बिगुल फिर मोदी का।
जनमत में झलक उठा फिर से विश्वास, विपुल फिर मोदी का।।1।।
समझदार मतदाताओं ने, मोदी को ही प्यार दिया।
ओछे जुमलेबाज उचक्कों को, सिरे से ही नकार दिया।।2।।
उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक मोदी-मोदी।
सत्तालोभी गठबंधनियों ने, अपनी कब्र खुद ही खोदी।।3।।
ऐसा कसकर दिया 'तमाचा', चौकस चौकीदार ने।
रुला दिया गठबंधनियों को, उसके प्रबल प्रहार ने।।4।।
माया रोए, ममता रोए, अरमानों के अस्ताचल में।
बेटा-बेटी दोनों सुबकें, सिर छुपा के मां के आंचल में।।5।।
चोर-चोर सब डूब गए खुद, 'चोर-चोर' के शोर में।
बह गया राफेल पर झूठा लांछन, मोदी की जय की हिलोर में।।6।।
सरकार बनाने के सपने सब, बिखर-बिखरकर ध्वस्त हुए।
अगले दस सालों के लिए हौसले, विपक्षियों के पस्त हुए।।7।।
मोदी-शाह ने उत्तर भारत में, कितनों के तम्बू उखाड़ दिए,
कितनी नई जमीनों पर विजयों, के झंडे गाड़ दिए।।8।।
चौबीस आते-आते गंगा में, कितना जल बह जाएगा,
काल-पट्ट पर कुछ का ही, नामों निशान रह जाएगा।।9।।