हिन्दी कविता : संहार पर मजबूरी है...

घाव जब नासूर बन जाए, गहन उपचार जरूरी है,
शांत अहिंसक भाव हमारा, संहार पर मजबूरी है।
 
रगों में शोणित उबला है, रिपुओं का मस्तक लाने को,
देखें चंगुल से ग्रीवा की, अब कितनी दूरी है।
 
क्षमा करने की नीति को कायरता क्यों समझ लिया,
आमंत्रण है अब रणांगण में तैयारी अबकी पूरी है।
 
कट-कट कर यों अरि गिरें ज्यों पतझर पात पके झरें
बीत रही ये तिमिर निशा प्राची देखो सिंदूरी है।
 
कवि-पं. हेमन्त रिछारिया

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी