कवि 'विद्रोही' को मैंने सिर्फ तस्वीरों में ही देखा। पहले कभी मैंने उनकी कविता नहीं पढ़ी लेकिन हां, अपने जेएनयू के दो-तीन दोस्तों से उनके बारे में सुना था। शायद उनकी मौत न होती तो उनके बारे में ज्यादा जानने का मौका तक न मिलता और उसी दिन ही मैंने उनकी कविताएं पढ़ीं।
कविताओं को पढ़कर पता नहीं क्यों मन में खलबली-सी मच गई और उनके बारे में लिखे बिना रह नहीं पाई। यह कविता उनकी ही कुछ कविताओं से प्रेरित है। पता है मुझे कि दूसरा 'विद्रोही' फिर से जन्म न लेगा लेकिन इस कविता के माध्यम से कहीं-न-कहीं मैंने उनकी भावनाओं से जुड़ने का प्रयास किया।