इंदौर के साहित्यप्रेमियों को सुविख्यात लेखिका मन्नू भंडारी से रूबरू होने का मौका मिला। कार्यक्रम था इंदौर लेखिका संघ द्वारा आयोजित 'संवाद' का -
मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति में संपन्न हुए इस कार्यक्रम में मन्नू जी ने कहानी-रचना स्वयं के लेखन, स्त्री विमर्श और अपनी आत्मकथा 'यही सच है' के अलावा कई निजी विषयों पर भी चर्चा की।
कार्यक्रम के आरंभ में लेखिका संघ की अध्यक्ष श्रीमती मंगला रामचंद्रन ने स्वागत किया एवं स्मृति-चिह्न भेंट किया। मन्नू जी का परिचय साधना भाया ने दिया। कार्यक्रम की सूत्रधार थीं उपाध्यक्ष ज्योति जैन।
कार्यक्रम में साहित्य प्रेमी पाठकों से संवाद करते हुए मन्नू जी ने उत्साह से जवाब दिए। जब उनसे पूछा गया कि आत्मकथा की रचना के दौरान आप घोर पीड़ा के दौर से गुजर रही थीं और यह बात 'एक कहानी यह भी' पढ़ने के दौरान सभी पाठकों ने महसूस की। नकारात्मक माहौल में रहते हुए भी आपका लेखन इतना सहज कैसे रह सका। इसके उत्तर में मन्नू जी ने कहा कि विकट स्थिति में भी मेरा लेखन सहज इसलिए रहा क्योंकि लेखन ही एक ऐसी शक्ति है जो विपरीत परिस्थिति में भी साथ देती है।
लेखन ने मुझे बचाए रखा या इसे यूँ कह सकते हैं कि लेखन ने मुझे थामा इसलिए मैं लेखन को थामे रख सकी। लेखन ही नहीं अभिव्यक्ति की ऐसी कोई भी विधा वह शक्ति होती है जो आपको अपने वजूद को बचाए रखने की क्षमता देती है। मेरा मानना है कि विषम परिस्थितियों में या तो आपमें इतना साहस हो कि आप उस परिस्थिति से बाहर निकल सकें या फिर सब कुछ सहें और कुछ न कहें।
मैंने इन्हीं परिस्थितियों में लेखन भी किया और यह निर्णय भी लिया कि मैं और राजेंद्र (लेखक राजेंद्र यादव) अब साथ नहीं रह सकते। लेकिन आज राजेंद्र और मेरे बीच ज्यादा संवाद है। साथ थे तब संवाद बंद था। आज मेरे और राजेंद्र के बीच मित्रता है लेकिन मित्रता में जो अंतरंगता होती है वह अब नहीं है। एक-दूजे के संकट में हम आज भी साथ हैं।
मन्नू जी ने अपने इस संवाद के दौरान पिता से विद्रोही संबंध, लेखक राजेंद्र यादव से बनते-बिगड़ते रिश्ते और अपनी सृजनधर्मिता पर आत्मीयता से चर्चा की।
इन दिनों मन्नू जी का लेखन क्यों बंद है, इस जिज्ञासा के समाधान में उनका कहना था कि आज मुझे एक ऐसी बीमारी ने घेर लिया है जिसे न्यूरोलजिया कहते हैं और इस बीमारी की दवाई दर्द के साथ-साथ दिमाग को भी सुन्न कर देने वाली है। जब मैं आर्थिक, मानसिक, पारिवारिक और शारीरिक कष्टों के बीच जी रही थी तब मैंने भरपूर लिखा लेकिन आज सिवाय शारीरिक कष्ट के मुझे और कोई अभाव नहीं है। फिर भी मेरा लेखन अवरुद्ध हो गया है।
मैं आप सबके बीच वर्षों के अंतराल के बाद इसीलिए आई हूँ कि मुझे आपसे प्रेरणा मिल सके। जब मुझे मेरे लेखन के प्रति पाठकों का भरपूर प्यार मिलता है तो मेरी तकलीफ और बढ़ जाती है कि अब मैं क्यों नहीं लिख पा रही हूँ। मुझे आप सबसे प्रेरणा चाहिए कि मैं पुन: लेखन में सक्रिय हो सकूँ और मैं उसी स्तर का लेखन कर सकूँ जिसके लिए मुझे पाठकों का सम्मान मिला।
मेरा मानना है कि स्त्री जब टूटती और बिखरती है, उसके बीच भी लेखन की सरलता को वह इसीलिए बनाए रख सकती है क्योंकि वह संवेदनशीलता के स्तर पर बहुत गहरी होती है।
मेरे लेखन की सफलता इसी बात में रही कि पात्रों से मेरा गहरा जुड़ाव रहा। जब मैं 'आपका बंटी' लिख रही थी तब शकुन भी मैं ही थी और बंटी भी मैं ही। जिस दिन 'आपका बंटी' खत्म हुई उस दिन मैं बहुत अकेली हो गई। इतनी खाली हो गई कि लगा जैसे मेरे अपने मुझसे बिछुड़ गए।
पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन में निष्पक्षता के प्रश्न पर उनका जवाब था कि कुछ रचनाएँ ही ऐसी होती हैं जो संपादक के सिर चढ़कर अपनी स्वीकृति ले लेती है। इसलिए लेखन में पक्षपात से ज्यादा रचना की सशक्तता काम करती है। मन्नू जी ने अपने इस संवाद के दौरान पिता से विद्रोही संबंध, लेखक राजेंद्र यादव से बनते-बिगड़ते रिश्ते और अपनी सृजनधर्मिता पर आत्मीयता से चर्चा की।