कोमल प्रेम कविता उनकी लेखनी से ऐसे झरती थी जैसे गुलमोहर की नाजुक पत्तियाँ। वे अब नहीं हैं हमारे बीच लेकिन उनकी एक खूबसूरत स्मृति आज भी तरोताजा हैं। उनके नन्हें-नन्हें काव्यात्मक उत्तरों ने मन मोह लिया था। उन दिनों स्व. नरेश मेहता इंदौर में थे। एक समारोह में हुई वह मधुर मुलाकात प्रस्तुत है आपके लिए- * आपकी काव्य यात्रा कैसे शुरु हुई? - प्रिय की तलाश में शुरु हुई और प्रिया के साथ चल रही है। (हँसते हुए- ये प्रिया मेरी पत्नी है)
* प्रेम आपकी नजर में? - कहाँ शेष है प्रेम? प्रेम अब फूल नहीं बल्कि फूल के चित्र जैसा हो गया है।
* आपकी प्रेम कविताओं से तो ऐसा नहीं लगता? - प्रेम पर कुछ भी लिखना बहुत कठिन होता है। फिर भला कविताएँ? वो तो तलवार की धार पर चलने जैसा होता है।
कोमल प्रेम कविता उनकी लेखनी से ऐसे झरती थी जैसे गुलमोहर की नाजुक पत्तियाँ। वे अब नहीं हैं हमारे बीच लेकिन उनकी एक खूबसूरत स्मृति आज भी तरोताजा हैं। उनके नन्हें-नन्हें काव्यात्मक उत्तरों ने मन मोह लिया था। उन दिनों स्व. नरेश मेहता इंदौर में थे।
* स्वयं के सृजन का मूल्यांकन कैसे करते हैं? - मैंने तो प्रयास किया है। नहीं जानता कि प्रयास करने की भी पात्रता थी या नहीं? लेखन मेरे निकट आया पर मैं उसके कितने निकट हो सका इसका निर्णय तो मेरे सृजन के माध्यम से आप ही को करना है। मेरा मतलब है कि निर्णय पाठक ही कर सकते हैं ।
* उज्जैन को किस रुप में याद करते हैं? - क्षिप्रा की तरल बयारों से लेकर महाकाल की सौंधी भस्म तक ।
* और इंदौर ? - भागता हुआ बड़ा होने को बेताब एक बच्चा, जिसके हाथ में पोहे-जलेबी हैं।
* वाह ! अब इलाहाबाद की बारी। - गंगा के लंबे चौड़े पाट, मुस्कराती सड़कें और पेडों की घनी छाँव.....।
* एक पंक्ति में तीनों ? देखो, उज्जैन मेरे दिल में है, इंदौर दिमाग में और बाकि सारे शहरों में मेरी देह यात्रा करती है। अब ठीक है? वहाँ मौजूद सब लोग खिलखिला दिए। -- (स्व. नरेश मेहता सुप्रसिध्द साहित्यकार हैं। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित नरेश जी को आज भी बड़े स्नेह और सम्मान से पढ़ा जाता है।)