एक लंबी कहानी : उसका होना...

-गरिमा मिश्रा तोष 
 
1
नीलांजना
 
तापसी नाम था उसका,जैसी सुंदर सुशील थी वो वैसे ही उसके भाव विचार, उसको देखकर अनुमान लगाना कठिन था कि वो दो जवान बच्चों की मां है,उसके पति प्रशासनिक अधिकारी थे। 
 
उनकी पदस्थापना कटनी कलेक्टर थी,हम पड़ोसी थे जब हम शिफ्ट हो रहे थे,तब वह स्वयं ही घर आई थी और एक अच्छे पड़ोसी का धर्म बड़ी ही सदाशयता से निभाया था उसने। 
 
मैं प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी,फिर तो कुछ ही दिनों में मिसेज राय से उसकी दी बनने में समय नहीं लगा था मुझे...  
 
हम आत्मीय संबंधों को सदैव प्रश्रय देते थे,वैसे भी हमारे बच्चे विदेश बस गए थे, कामकाज के सिलसिले में हम दोनों ने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ना चाहा था, तो हम इंदौर में ही बस गए क्योंकि प्रवीर, मेरे पतिदेव की पहली पोस्टिंग यहीं रही थी और सौभाग्य से रिटायर भी यहीं से हुए, रिटायरमेंट के बाद प्रवीर ने अपना डिजायनिंग हाउस खोल लिया था, आर्किटेक्ट भला रिटायर होते हैं कभी, अब नई पुरानी इमारतों को अपनी सोच से सजाते संवारते रहते हैं। मैं लघु उद्योग में हथकरघा संगठन से जुड़ी थी, समाजसेवा के साथ साथ अपने शौक को भी जीवित रखा था।  लेखन और काउंसिल करती थी। दफ्तर छोटा सा खोल रखा था। जहां वो कारीगर और कशीदाकार ज्यादा आते थे जिनको कोई भी समस्या आती थी। 
 
सब साधती हुई मैं एक छोटा मोटा नाम बन चुकी थी। खैर मुझको छोड़िए तापसी को जानिए, तो मैं कहां थी हां तापसी हमारी पड़ोसी थी अपने गंभीर आवरण में एक प्यारी सी नेह भरी तापसी को, मैंने इन बीते वर्षों में जाना और उसके जीवन को भी। प्रवीर को भाई दादा कहती और मुझे दीदी मैं पूछती ऐसा क्यों तो ''कहती मेरे जीवन में दोनों रिश्तों की पूर्ति आप दोनों ने ही तो की है। ईश्वर ने भाई बहन दोनों ही नहीं दिए थे, जिसकी कमी आप दोनों ने पूरी कर दी। 
 
कहते हुए मेरे चरण छू लेती थी, इतनी सरल प्रेममय तो मैं भी नहीं थी, प्रवीर के शब्दों में,वो हमेशा कहते थे- कुछ सिधाई अपनी, दी को भी दे दे तापसी तेरी तरह नहीं तो कुछ, तुझ सी ही बन जाए कहते हुए हंस दिया करते थे और तापसी की आंखें क्यों भीग जाती थीं ये मुझको बहुत बाद में समझ आया... 
 
एक रोज,श्यामली तापसी की एक पुरानी सखी आई थी उसके घर, बस उसने मुझको बुला भेजा,'दीदी यदि व्यस्त न हों तो आ जाइए साथ ही भोजन करेंगे वैसे भी भाई दादा का तो आज एकादशी का उपवास होगा''
 
मैंने देखा प्रवीर कोई नक्शा देख रहे हैं,बहुत तल्लीन हो कर,मैं दबे पांव निकल आई,अपने अहाते को पारकर तापसी के गेट को पहुंची ही थी एकाएक याद आया, अरे काजू कतली बनाई थी, तापसी के  लिए वो तो भूल ही गई ले जाना, बड़ी कोफ्त हुई,फिर वापस आई और डब्बे से मिठाई निकाल कर प्लेट में रख ही रही थी कि इतने में प्रवीर आ गए पूछने लगे अरे आप कहां चलीं? जानेबहार, मैं चिहुंक पड़ी - क्या है आर्किटेक्ट साहेब, बेवजह क्यों कुछ भी कहते रहते हो,वो तो अच्छा है सारे भृत्य गण चले जाते हैं इस वक्त तक नहीं तो क्या सोचते चलो हटो,जाने दो,तापसी ने बुला भेजा है...  
 
इतने में ही टेबल पर रखा मोबाइल झनझना उठा, प्रवीर हाथ में देते हुए बोले ''अरे मेरी सोंदेश,तुम इस युग उस उम्र में फंसी रहो मैं तो आज भी तुम्हारे इस लाल पाड़ की सुनहरी साड़ी के पल्ले सा तुमसे लिपटा रहूंगा,तुम्हारे शंखा पॉला की चमक बन कर बनकर तुमको छूता रहूंगा.. 
 
''अच्छा जी तो किसी बंगाली की हवेली को पुरानी से नई करने वाले हो तभी इतना बंगाली प्रेम में डूब रहे,'' हम्म'' कहती हुई मैं हंसने लगी,फोन पर परली तरफ तापसी ही थी ''कहने लगी.. दी कहां हैं ?जल्दी आइए पेट में चूहे थककर बैठक जमा चुके हैं, मुझको भूख लगी है... 
 
.मैंने कहा, आ रही हूं,ये तुम्हारे दादाभाई को बंगाली प्रेम हो गया है, अब दो तीन महीने की छुट्टी समझो...  कहती खिलखिलाती हुई, मैं तापसी की ओर निकल पड़ी... 
 
उस दिन नहीं मालूम था कि आगे जा कर, ऐसा रहस्योद्घाटन होगा,जो मेरे विश्वास की अवधारणा को हिला सकेगा पर, हां तोड़ नहीं पाएगा...तापसी कितनी सुरुचिपूर्ण है यह उसके घर की नेमप्लेट से लेकर लॉन में रखी सुंदर लोहे की नक्काशी वाली कुर्सियां या कतार में लगे फूलों के पौधे या फर्न और क्रोटन्स से घिरा छोटा आर्टिफीशियल झरना। युरोप की नक्काशीदार तराशी सुंदर सी सद्यस्नाता स्त्री का पुतला,एक अलग सी रौनक लिए, उसकी मुस्कुराहट बलात् घर में आनेवाले का ध्यान आकर्षित कर लेती। 
 
मैं हमेशा तापसी को कहती कि ये मुझको तुम्हारी याद दिलाती है कितनी सुंदर फिर भी कुछ सूनी कितनी सजीव ,फिर भी कुछ समाप्त सा हुआ लगता था,दोनों में साम्य था बड़ा अजीब सा... 
 
सामने ही छोटी बैठक में जापानी स्टाइल के मोढे लगा रखे थे उसने और छोटे बड़े पंखों को यूं फैलाकर लगाया था दीवाल पर मानो मिनियेचर हों म्यूरल्स की झलक भी दे कर,उसने उस बैठक को अलग ही रूप दे रखा था, सीप और शंख को दीवार पर यूं सजा रखा था मानो यही हैं जो बोलते होंगे क्योंकि तापसी तो बस ब्रश और रंगों की भाषा जानती थी। 
 
घंटी बजाती इतने में दरवाजा खोल मेरे गले लग गई, कब से इंतेजार कर रही हूं,चलो भूख लग रही है... फिर बगीचे में खो गईं थीं है ना... 
 
मैंने मुस्कुरा कर देखा, प्यार से उसके गालों  को थपथपाकर काजू कतली की प्लेट पकड़ा दी, ''फिर मीठा ले आईं आप....श्यामली देखो दीदी आ गईं 'कहती भीतर की ओर चली गई.... 
 
मैं चप्पल किनारे उतार कर मुड़ी ही थी कि एक मध्यम कद काठी की थोड़ा भरे शरीर वाली खुले बालों और अधरों पर गहरी लालिमा लगाए, एक मध्यम ,आयु की महिला खड़ी थी,जिसने मेरे पैरों को छूने का उपक्रम करना चाहा मैं,थोड़ा पीछे हट गई और कहा...'अरे खुश रहिए,मैं पैर नहीं छुलवाती... 
 
तो उसने बड़ी चहक के साथ कहा प्रणाम ,और कुछ ज्यादा ही हंसते हुए अपनी दोनों आंखों को गोल घुमाकर,पहले ही से ज्यादा बड़ी मुस्कान को और बड़ा कर के मुझको अपना परिचय दिया,'' मैं श्यामली,तापसी भाभी की सहेली.... 
 
 अब मैं चौंकी भाभी और सहेली दोनों कैसे? खैर तापसी की चुप्पी से समझ गई कि मुझे इसी बला को समझने को बुलाया है घर तापसी ने... 
 
वर्षों के अनुभवी हृदय ने जान लिया कि काम मिला... 
 
श्यामली एक एक्स आर्मी अफसर की बेवा थी,जो युद्ध में शहीद हो गए थे और वह स्वयं एक समाज सेविका के तौर पर कार्यरत थी। 
 
सतही तौर पर देखने में आकर्षक थी, और उसकी वाणी में सम्मोहन था पर मुझे उसकी आंखों में और बातों में साम्यता नहीं दिखी, वो कहना कुछ और चाहती थी और,कहा कुछ और आता हो ऐसे लोग मुझे जहर से लगते थे। भोजन करते हुए वो तापसी की तारीफों के पुल बांध रही थी, क्या खाना बनाया,भाभी मजा आ गया... 
 
रोहित क्यों फिदा न हों भई इतनी गुणी जो हैं आप... 
 
तापसी एक क्षीण सी मुस्कान देकर चुप ही रही..मुझे कुछ अव्यवस्थित सा, बिखरा सा लगा.... 
 
खैर भोजन हुआ डायनिंग टेबल समेटती तापसी,पर मेरी दृष्टि गई तो सोचा,''पीली साड़ी में मोरपंखी रंग का प्रिंटेड ब्लाउज पहनी एकांगी छोटा सा पेंडेंट गले में एक हाथ में कंगन दूजे में घड़ी छोटे से चेहरे पर ,बड़ी सी गोल लाल बिंदी... रेशमी बालों का ढीला सा जूड़ा डालकर उसने अपने आभामंडल को और बढ़ा लिया था... 
 
पता नहीं क्यों अचानक ही उन दोनों की तुलना करने लगी। कितनी अलग सी है,तापसी यथा नाम तथा गुण और श्यामली जंगली झरने सी कुछ उद्ंड ढीठ सी... 
 
तापसी पान बना लाई उसको पता है कि भोजन के बाद मैं घर का लगा पान खाती हूं उसने घर में ही पान की बेल लगा रखी है,पान खा कर हम बैठे बात करते रहे... 
 
उस दौरान भी मैंने देखा श्यामली बार-बार अपनी बराबरी कर रही है तापसी से जाने क्यों मुझे कुछ तैरता सा दिखा था... दोनों के बीच ख्याल था, सांझा प्रेम या उसका दुख यही जानना था। 
 
शाम होने लगी थी मैं ने कहा अब आप लोग बातें करो मैं जाती हूं ,फिर मिलते हैं ओके श्यामली, नाइस टू मीट यू...
 
जी, कभी आइए हमारे गरीबखाने में 'कहती हुई खड़ी हो गई।  
 
तापसी दरवाजे तक छोड़ने आई तो अस्ताचल का सूर्य प्रतिबिंब उसके गौरवर्ण को पीतवर्णी दिखा रहा था या उसके पहने रंग का दोष था। 
 
2
तापसी
 
आज राय दंपत्ति मेरे बगल वाले घर में रहने आ गए हैं, कितनी प्यारी जोड़ी है, प्रवीर रॉय और नीलांजना जी... कितने सहज सरल और आत्मीय हैं,पहले ही दिन से एक लगाव हो गया। 
 
मैंने देखा दोनों घर जमा रहे हैं तो एक पड़ोसी के नाते उनको, चाय वगैरा के लिए पूछने गई,फिर थोड़े ही समय में घनिष्ठता ऐसी बढ़ी कि एक ही परिवार लगने लगे हम... मैं हमेशा से मानती आई हूं कि जीवन को कुछ नया करना हो,तो अपने रिश्तों पर काम करो,और बहुत से रिश्तों को खो कर यह तो मैं जान ही गई थी, अब चूक की संभावना कम ही थी। मेरी दुनिया, मेरे बच्चे माता-पिता और मेरा शौक, घर बगिया यही थे। 
 
पति ज्यादातर बाहर की पोस्टिंग पर ही थे वैसे भी बड़े ओहदों की कीमत भी बड़ी हुआ करती थी, मैंने कभी भी प्रशासनिक अधिकारी की पत्नी के ओहदे को जीना पसंद नहीं किया क्योंकि नैसर्गिक साम्यता वहां हो ही नहीं पाती। जहां आप हमेशा कुछ और होने की कोशिश करते हों और हम दोनों ने उस छोटे से अंतर को पूर्णतः गरिमा के साथ निभाया सदैव... 
 
सोचते हुए मुस्कुराने लगी तापसी और डस्टिंग करते उसके हाथ रोहित की तस्वीर को उठा पास लाकर निहारने लगे, तभी आकाश की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी, 'मां मेरा गिटार फिर भुवी ने छुआ था क्या? कहते हुए अपने कमरे से झांका और तापसी को पिता की तस्वीर निहारते देख कर बोला 
''मां कितना सादा सा प्रेम है आप दोनों का...' 
बस मैं तो चकित हूं इस अभिव्यक्ति पर... 
तापसी ने देखा बिखरे बाल,सलोना,श्याम, घनी दाढ़ी में, सफेद टी शर्ट नीले जींस में आकाश कहीं बाहर जाने की तैयारी में था...  
 
''तू कहीं जा रहा है क्या? अरे बाल तो बना ले और क्या हुआ जो भुवी ने जो गिटार छू लिया.. 
 
''अरे मां उसके सुर हिल जाते हैं तार ढीले कर देती है.... बोलते हुए मुझे कंघी थमा दी उसने, 
 
कंघी उसके बालों में फेरते मैंने कहा-'अरे छोटी है बेटा'
 
ये छोटी नहीं मोटी है मां, आता तो है नहीं बजाना,एवंई सब बिगाड़ देती है। 
 
''दादा फिर मोटी बोला आपने मुझको... हेडफोन हटाती हुई उसके पीछे पड़ गई और थोड़ी देर को लगा, 
 
मेरे घर में कितनी शांति है। मुझे इन दोनों की ये शैतानियां ध्यानस्थ कर देती थीं और मेरी जीवन तपस्या फलीभूत सी लगती थी... आकाश कब मेडिकल के अखिरी वर्ष में आ गया था... और भुवी कब बारहवीं में मैं जान ही नहीं पाई ,बस ऐसे ही चलता रहा... बड़े परिवार की बहू हो कर सबकी देखभाल और फिर घर परिवार... 
 
जब बच्चे थोड़े बड़े हुए तब मेरा एक शौक पेंटिंग को जानकर मेरे लिए एक कोना घर में ऐसा ढूंढ लाए जहां मैं रंगों में घुलकर स्वयं को जान पाती थी और कुछ ही वर्षों में चार-पांच प्रदर्शनियों का सफल आयोजन कर,प्रदेश में एक नाम तो बन ही गई थी... 
 
सोचती हूं क्या यही पहचान थी मेरी?
 
नीलांजना दी से मिली तो जान पाई थी कि स्व को कैसे पूर्ण कर सकते हैं... उनके बच्चे बाहर थे वे उनको सस्कार शील तो बना सकीं पर भावों से मजबूत न बना पाईं.... और एक कोना उनका खाली रहा। उन्होंने माता-पिता और कर्मक्षेत्र में से अपना काम चुना। दी को इस बात का रंचमात्र भी अफसोस नहीं है। 
 
 वे कहती हैं- तापसी मैं अपने पति को अपने ही बच्चों से ज्यादा प्रेम करती हूं फिर स्वयं को... क्योंकि मेरा मानना है ये हमारी कृति हैं इनके लिए हमको अपने आप को नहीं भुलाना चाहिए आज नहीं तो कल वे वापस आ ही जाएंगे...हम क्यों बदलें.... 
 
उनकी यह बात कुछ हद तक सही लगी मुझको और हो क्यों न उनका प्रेम पारलौकिक है। ऐसा प्रेम जिसको देखकर लगता है कि आज भी ये कहीं न कहीं रह गया है थोड़ा सा बचा हुआ सा... खैर मैं तो बस गुनती ही रहती हूं प्रेम को, सुनती नहीं हूं, क्या करूं मेरे साथ प्रेम है तो सही पर पास नहीं है। 
 
सोचते हुए तापसी अपनी नीली साड़ी के आंचल को कमर में खोंस कर फिर गृहकार्य में लग गई... शाम को स्टूडियो जाना है कुछ आर्टिस्ट आ रहे हैं उनको कल महेश्वर ले जाना है। स्केचिंग लोकेशन के लिये डेमो भी हो जाएगा और कुछ स्पॉट शॉट्स भी ले लूंगी... 
 
सोचते हुए भुवी  को डांस क्लास के लिए तैयार होने को बोल फोन चेक करने लगी कि कोई मिस्ड कॅाल तो नहीं है देखा, श्यामली का कॉल पड़ा है। अचानक कुछ अजीब सा हुआ, दिल में जाने कौन सी तरंग उठती है इसके नाम को देखकर। 
 
खैर बाद में देखती हूं सोचते हुए कार के हार्न को दुबारा बजाया तो नीलांजना दी बाल्कनी में आ गईं 
 
बोलीं ''क्या है री साध्वी ,....!.''
 
''अरे दी मैं सिटी की ओर जा रही हूं कुछ लाना तो नहीं है ?'
 
तब तक भुवी दौड़कर कार में बैठ गई, बोली मां चलिए देर हो रही है...खिड़की से सर निकालकर चिल्लाते हुए बोली ''आंटी बाय अंकल की फेवरिट आइस्क्रीम जरूर ले आएंगे-कहते हुए हंसने लगी। 
 
मैं और नीलांजना दी के समवेत ठहाके में भाई दादा की आवाज भी शामिल होते ही,अचानक उठी तरंग कहीं खो गई फिर से मैं वही तापसी हो गई। जिसको भान था कि प्रेम मेरा है और पूरा है। 
 
3  
नीलांजना 
 
प्रवीर कल तापसी को महेश्वर जाना है क्या मैं भी चली जाऊं?
 
कुछ मेरा भी काम है। 
 
चाय केटली में डालते प्रवीर बोले', ''ठीक है चली जाना पर देखो ड्रायवर ले जाना तुम दोनों थक जाओगे 
 
कप थामते हुए मैंने, कहा-हां,रघु को बोल दिया है तापसी ने... 
 
''सोच रही हूं लूम से कुछ साड़ियां और तुम्हारे लिये कुर्ते के पीस भी देख लूं... कहो तो.... 
 
तभी हाथ का कप रख कर मेरे पीछे खड़े होकर अपनी बाहों में मुझे घेरते हुए बोले-जानेबहार, तुम जो चाहो वो ले आओ बस इतना ध्यान रखना कि मेरे क्रेडिट कार्ड का सदुपयोग ही हो... और अपना गाल मेरे गालों से रगड़ते हुए ठठाकर हंस पड़े मैं अपना गाल सहलाते चिढ़ते हुए कुछ और बोलती.... 
 
इतने में कॉल बैल बज उठी इस वक्त कौन हो सकता है, सुबह के नौ बजे... 
 
राधा देखो तो बाहर कौन है? बोलते हुए ,मैं प्रवीर को छोड़ कर कमरे से बाहर आ ही रही थी कि राधा आ गई। उसने बताया कि तापसी दी ने आइसक्रीम भिजवाई है, मैंने फ्रिजर में रख दी है, आप कहें तो ,जो भरवां मिर्च बनवाई है वह उनके यहां दे आऊं... 
 
मैंने कहा -''अरे ठहर मैं दे आऊंगी''  
 
कल का तय करना है..तू डब्बे में भर कर दे दे मुझे... तब तक मैं प्रवीर को छाछ देकर आती हूं.... शिमला से लाई लकड़ी की ट्रे में क्रिस्टल का ग्लास रखते हुए मुझको गतवर्ष की छुट्टियां याद आ गई, प्रवीर ने कितनी जिद की थी नहीं शॉपिंग तो हम करेंगे ही मॉल रोड़ से। तरह तरह की सजावटी वस्तुएं देश भर से इकट्ठी करने का का शौक है उनको। यह ट्रे विशेष वही जिद करके ले आए थे। 
 
मुस्कुराते हुए छाछ भर कर उनके पास खड़ी हुई,तो अपने रोमांस में पड़े खलल को शिकायती मुंह बनाकर सिगार सुलगाने की व्यर्थ कोशिश में लगे थे जनाब... 
 
सफेद कुर्ते पायजामे में दुबली छंटी काया, घने श्वेत केश और मैदे को मात देता गौरवर्ण, सुनहरी चश्मे में और कांतिमय लगने लगते थे। गला खखारते हुए मैंने कहा ''प्रवीर रायसाहब आपके लिए छाछ रखी है। थोड़े से मक्की के कबाब के साथ अभी नोश फरमाइए ये सिगार रहने दीजिए... और हां लंच में हैदराबादी डिश है, जिसका समापन सीताफल की आइसक्रीम के साथ होगा। कैसा लगा आइडिया,तो कहने लगे नीलांजना मुझको सताओ मत, मैं नहीं मानने वाला- मुंह बनाकर खिड़की के पास खड़े हो गए... 
 
मैंने कहा-ठीक है जब गुस्सा उतर जाए तब खा लीजिएगा, मैं तापसी के घर जा रही हूं उसको कुछ देना है और हां आइसक्रीम भुवी लाई थी... 
 
मैंने देखा भुवी का नाम सुनते ही पलट कर फोन उठा रहे हैं... मैं समझ गई कि उसको मैसेज कर रहे होंगे,कनखियों से मुझको देखते हुए बोले ठीक है,जाओ मैं खा लूंगा मगर जल्दी आना.... 
 
ओके आती हूं कहते हुए मैं सीधे तापसी के घर पहुंच गई .
 
दरवाजे पर रघु मिल गया, बोला- मैम अभी थोड़ी देर पहले ही भीतर गईं हैंआप चले जाइए... 
 
मैं सीधे उसके बेडरूम में चली गई क्योंकि रोहित तो कटनी मैं ही है ये पता था और इतवार में बच्चे दस बजे तक अपने कमरों में ही होते हैं। 
 
जैसे ही उसके कमरे में मैं गई तो देखा वो बेड पर बैठी फोन हाथों में लिए रो रही है, उसको ऐसे टूटते पहले कभी नहीं देखा, मैं कुछ कहती तब तक आहट से मेरी वो संभल गई.... 
 
मैंने पानी दिया और उसके कंधों पर अपना हाथ रख पूछा यदि सही समझो तो बता दो, क्या बात है जो यूं परेशान हो?
 
तुरंत मुंह पोंछ कर कहने लगी', ''दी आज पापा बहुत याद आ रहे थे...सफेद साड़ी में अनारी रंग के पल्ले से मुंह पोंछती छोटी बच्ची सी लगी। 
 
मैं ने कहा चलो नहीं बताना तो ठीक है, जब लगे तो कह देना ठीक... 
 
चलो बाहर चलो कॉफी बनाती हूं... . 
 
उसे लेकर बाहर आई ही थी कि देखती हूं,आकाश कॉफी केटल से कप में कॉफी डाल रहा था... 
 
मैने बोला 'अरे आकाश तुम कब आ गए ?
 
क्यों परेशान हुए? मैं बना लेती ना... 
 
तो बोलने लगा वाह मेरी इतनी सुंदर सखी स्वरूपा माताएं अपने भाव सांझा कर रही हैं तो एक कॉफी मेरी तरफ से तो बनती है, चलिए खुश हो जाइए और कॉफी पीजिए... 
 
फिर मेरी तरफ दखते हुए बोलता है-आदरणीया और कुछ लगेगा तो बता दीजिएगा मैं अपने कमरे में जा रहा हूं... 
 
आकाश को देखकर,कभी कभी लगता है, काश मेरे बच्चों में भी इतनी गहरी समझ होती जीवन को,  रिश्तों को समझने की... खैर आज नहीं तो कल समझेंगे...  
 
तापसी कॉफी पीते हुए भी कुछ चुप ही रही आई।  
 
बार-बार फोन को जरूर देखती थी पर कुछ कहती नहीं थी... 
 
मैंने बातों ही बातों में महेश्वर की सारी रूपरेखा पूछ ली और कहा भोजन के लिए तुम परेशान न होना मैं रख लूंगी साथ में... 
 
तो बोली, नहीं दी आप कुछ मत बनाइए अपना भोजन श्यामली के यहां है वो वही रहती है ना।  
 
मैंने कहा चलो ठीक है ....फिर कल मिलते हैं... अब मैं चलती हूं प्रवीर भोजन के लिए रुके होंगे... तुम भी समय से खा कर आराम अवश्य कर लेना... 
 
घर गई प्रवीर को भोजन परोसा खुद के लिए नींबू पानी बना कर बैठ गई। तो कहने लगे अरे तुम न खाओगी कहते हुए चश्मीली आंखों से घूरने लगे- मैंने कहा,अरे मन नहीं, तबियत ठीक नहीं है,थोड़ी देर आराम कर लूंगी तो अच्छा लगेगा... ' 
 
तो बोले- ओह तो आप न जाएं कल, मेरी तो यही सलाह है... 
 
नहीं जी दरअसल तापसी कुछ छिपाती है प्रवीर। ऐसा लगता है मुझको फिर सब बताया उनको... 
 
तो कहने लगे- देखो नीलांजना कुछ बातें समय पर छोड़ दो जब उचित समय होगा तो आपको सारे सवालों के उत्तर मिल जाएंगे, और तापसी समझदार है वो जानती है कि क्या कब कैसे बताना होगा चलिए आप कमरे में जाइए हम आइसक्रीम लाते हैं कहते हुए उठ खड़े हुए... 
 
प्रवीर के साथ बात करते पूरा दिन बीत गया और उसके बाद शाम को ही सब तैयारी लगा कर रख दी। 
 
तापसी
इधर तापसी सोच रही थी कि आज नीलांजना दी को मुझको सब बता देना था। उनसे छिपा कर मन दुखी है.. खैर सोचती हूं कल महेश्वर में मौका लगा तो बता दूंगी। 
 
ये फोन क्यों बार बार कर रहा है रोहित... इतना चिल्ला कर दिल नहीं भरा इसका, खुद गलती पर है और मेरी कमियों पर बातें करता है। हर वक्त न आना पड़े घर तो बहाने से बातें बढ़ाकर सारा दोष मेरे माथे कर देगा।   
 
मेरे प्रेम को कितना हल्का लिया उसने वो तो बच्चों के लिए अभिनय है। पर क्या सच में अभिनय है?
 
मैं प्रेम नहीं करती हूं क्या?
 
यही सोचते हुए सारा काम समेट, शाम की तैयारी की और स्टूडियो चली गई। रात हो गई वापस आते। 
घर पहुंच कर देखा दोनों बच्चे, प्रवीर दा, लॉन में बैठे गपिया रहे हैं। 
 
और नीलांजना दी किचन में लगी है,कुछ बनाने में.... 
 
मैं समझ गई कि सामूहिक मूड ठीक करो मुहिम पर हैं सब, मुस्कुराती हुई मैं शामिल हो गई अपनी टोली में। 
 
नीलांजना 
सुबह छ: बजे हम महेश्वर के लिए निकल पड़े। तापसी के सारे स्टूडेंट्स पीछे दूसरी कार में थे। 
 
जो रास्ते भर रुक रुक कर फोटोग्राफी करते रहे, तो हम तय समय से कुछ विलंब से महेश्वर पहुंचे और हमारे साथ साथ पहली बरसात की झड़ी भी पहुंच गई, मैने तुरंत लूम की ओर रुख किया और तापसी महेश्वर घाट पर मां नर्मदा से संवाद को अपनी कूची ले कर डट गई ये देख बरखा रानी भी तनिक थम सी गईं। 
 
हम तो अपने काम में ऐसे डूबे कि दोपहर होने को आई तब तापसी के कॉल से मेरी तंद्रा टूटी - दी मैं गाड़ी भिजवा रही हूं आप श्यामली के घर पहुंच जाइए। हम इन सब को बिदा कर के आते हैं,दोपहर हो रही है आपको भूख लग आई होगी। 
 
ओके ,कह कर मैने कॉल रखी और प्रवीर को फोन लगा कर पूछा कि भोजन कर लिया?दवा ले ली थी न?तो कहने लगे कुछ ही घंटे हुए हैं घर से गईं हैं, आप और इतनी याद अरे जाने जां इसीलिए तो हम इतने फिदा हैं आप पर, चलिए जल्दी से काम पूरा कीजिए और रात के पहले आ जाइए...   
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नीलांजना बोली- ठीक है वैसे भी सब काम हो गया है, कारीगरों की जो डिमांड थी वो मेल कर दी है। और हां आपके लिए कुछ कुर्ते ले लिए हैं। बाकि बातें आकर करती हूं भोजन के लिए तापसी की सहेली के यहां जा रही हूं। 
 
फोन रखती हूं, कहते हुए रघु को इशारा किया सामान रखवा ले, गाड़ी में, और बैठ गई... रघु को पूछा - तुमको घर पता है ना श्यामली का?
 
जी, मैम के पहले भी मैं उनके घर जाता रहा हूं. ..क्योंकि साहब यहां आते थे जब खरगौन कलेक्टर थे। 
 
अब मेरे चौंकने की बारी थी क्या??? रोहित श्यामली के यहां आते थे?
 
जी ,मैम साहेब को मैं ही कई दफा लेकर आया हूं यहां पर तापसी मैम को नहीं बता सका कभी। 
 
अब आश्चर्य के साथ साथ उत्सुकता भी जागी, पर भृत्य है उसको क्या ही पूछूं सोच कर चुप रही। 
 
श्यामली का घर सिविल एरिया में था। काफी सुसज्जित और भव्य, उसकी साज सज्जा बाहर बगीचे से ही देखकर समझ आ रही थी। पोर्च में गाड़ी रुकी तो मैं ने देखा कि बाहर ही खड़ी श्यामली मेरा इंतजार कर रही थी। आज कुछ अलग सी लग रही है,थोड़ी सहज और सौम्य। शायद मुझे ही ज्यादा सोचने की आदत है। 
 
आइए दी सादर प्रणाम स्वागत है, मेरे गरीबखाने में आपका... कहती अंदर ले गई, अपनी ही रौ में बोलती रही, तापसी भाभी ने बताया उनको थोड़ा समय लगेगा आने में... तब तक आप कुछ शिकंजी वगैरा पीजिए कुछ स्टार्टर्स भी हैं...  
 
मैने कहा जो भी है सब ले आओ क्योंकि, मेरे खाने का वक्त वैसे भी निकल चुका है। अब तो शाम हो चली है, थोड़ी देर में...जी कहते हुए वह अंदर चली गई। 
 
 तब तक उसके घर में एक नजर दौड़ाई,देखा सुरूचिपूर्ण सज्जा है। एक फौजी का घर दिख रहा है।  एक बड़ी सी तस्वीर में नजर रुकी ही थी तभी ट्रे पकड़े श्यामली पीछे से बोल पड़ी दी, ये थे मेरे पति कैप्टन प्रतीक सूरी,मैने देखा एक प्रभावी छवि थी। 
 
तभी देखा तस्वीर से लगे बाईं तरफ के दरवाजे से लग कर, एक बच्चा खड़ा है। उसको देख श्यामली बोली- आओ, आरव आंटी को प्रणाम करो ये तापसी ताई जी की दीदी हैं।  कह कर अपने बेटे से मिलवाया। लंबा कद,सांवला सा, बारहवीं में पढ़ता होगा अपने पिता सा ही लगभग। मेरे पैर पढ़ कर अपने कमरे में जाने को बोलकर चला गया... 
 
श्यामली साथ ही बैठ गई। इधर उधर की बातें करते कुछ ही समय हुआ था। 
 
तभी तापसी आ गई हमने, मिलजुलकर भोजन किया खाना अच्छा बनाया था उसने और बड़ी मनुहार से खिलाया भी पूरे समय वही बोलती भी रही तापसी कुछ मुस्कुराती हुई सुन रही थी। मैंने देखा जैसे कुछ सोचती हुई सी पर खुश दिख रही थी। 
 
तभी श्यामली बोली, दी आप काउंसलर हैं न, तो क्या मेरी बात सुनेंगी?
 
नीलांजना बोली - बिल्कुल क्यों नहीं बोलो क्या कहना है?
 
तापसी भी श्यामली की ओर देखने लगी और डिजर्ट लेते हुए बोली, ये तो दूसरी ही मुलाकात है तुम्हारी इतना विश्वास दीदी पर क्यों भला?
 
अरे नहीं भाभी आप तो इतनी समझदार और सहनशील हैं मानो कोई संत, पर मै तो अत्यंत अल्पबुद्धि और लगभग बुरी ही हूं। पर इंसान को समझ जाती हूं एक ही नजर में। आपकी दीदी हैं आप सी ही तो होंगी... हैं न नीलांजना दी। 
 
हम्म, कहा मैंने और सोचने लगी कि अचानक क्यों इतना स्वतंत्र विचार सांझा कर रही है...   
 
तभी मैंने पूछा - अच्छा बताओ तुम तापसी को कब से जानती हो और भाभी क्यों कहती हो?
 
तो बोली चलिए सब विस्तार से बताती हूं बेडरूम में पलंग पर पैर ऊपर कर के बैठिए मैं पान लेकर आती हूं... 
तापसी भाभी की पान की बेल मैंने भी अपने यहां लगा रखी है बहुत कुछ है जो सांझा कर लिया है मैंने जाने-अनजाने ही कहते हुए फिर वही मायावी हंसी हंसती अपने कंदरा से गृह में जाने कहां समा गई। 
 
तापसी को देखा तो जाने कहां गुम थी सोच में। वैसे भी श्यामली के समक्ष वह कम ही बोलती थी ये मैंने देखा था। खैर पान के इंतजार में मैं आंखें मूंद कर कुछ देर बैठी रही। 
 
तभी देखा श्यामली पान बनाकर ले आई चांदी की तश्तरी में, बाकायदे लगा हुआ पान खाकर आनंद  आ गया, तापसी तो पैर मोड़े वज्रासन में बैठी रही। मैंने तकिया टिका कर पैर फैला लिए... पलंग में पैताने श्यामली भी बैठ गई और बोली अच्छा हुआ आप आज आ गईं दी जब पिछली दफा आपसे मिली थी तब ज्यादा कुछ बात हो ही नहीं पाई थी... पता है दी मैं भाभी को जानती तो बहुत पहले से थी पर मिली प्रतीक के जाने के बाद, दरअसल रोहित और प्रतीक बैचमेट्स थे। दोनों के कार्यक्षेत्र अलग होने के कारण बस बातचीत ही हुआ करती थी कभी मिले नहीं थे..फिर जब इनलोगों की कॉलेज मीट हुई तब सब से मिलने का मौका मिला। चुंकि मि.सूरी यहीं के थे तो उन्होंने सेटेलमेंट का भी यहीं सोचा था कि वी आर एस लेकर यहीं कुछ फार्मिंग वगैरा करेंगे, सो हमने घर यहां महेश्वर में बनवा लिया था। 
 
भाभी से दो चार बार फोन पर बात कर के ही मैं इनके सरल प्रेमल हृदय की थाह पा चुकी थी। रोहित की जब यहां पोस्टिंग हुई उस दौरान हमारा काफी मिलना हुआ। अक्सर मेरे घर से भोजन रोहित के लिए जाता था। भाभी जी तो इंदौर ही रहीं बच्चों की पढाई के कारण, तब तक मेरी भी रोहित से गहरी मित्रता हो गई थी, फिर अचानक एक दिन खबर आई कि प्रतीक को कश्मीर पोस्टिंग आ गई है,... 
 
हमने सोचा दो साल बाद वी आर एस लेना ही है ये आखिरी फील्ड है ले लेते हैं.. क्या पता था कि ....


क्या पता था कि वो जीवन की आखिरी पोस्टिंग साबित होगी, मि.सूरी तिरंगे में लिपटकर आए शहीद की बेवा होने के नाते मैं रो भी न सकी, एक चुनौती के साथ खुद को और आरव को संभाल कर स्थापित किया... उस दौरान रोहित ने मेरी बड़ी मदद की। 
 
तभी भाभी प्रतीक के जाने के बाद पहली बार यहां किसी कार्क्रम में मुख्य अतिथि बनकर आईं। तब मैं उनसे पहली बार मिली और फिर हम मिलते ही रहे। भाभी मेरी सहेली बन गईं अक्सर मैं आ जाती यहां या इनको बुलवा लेती। कभी शॅपिंग हो या मेरा घर सजाना हो, हर तरह से सलाह देतीं, कभी कुछ बना लिया साथ खा लिया या महेश्वर घाट चले गए सच कहूं दी उन्होंने ...मुझे बहुत बदल दिया मैंने इनसे बहुत कुछ सीखा, पहले मेरा चित्त स्थिर नहीं रहता था किसी से भी जुड़ जाती थीं। पर इनके भीतर की धीरता देखकर मैं बहुत संभली हूं।  
 
सच कहूं तो इस कनफेशन की स्वीकारोक्ति की हिम्मत भी इन्होंने ही दी है मुझे, ..कहते हुए तापसी के हाथों को पकड़ कर बैठ गई, श्यामली उसके पैरों के पास उस समय किसी छोटी बच्ची सी लगी..तापसी ने एक हाथ उसके सर पर रख दिया और कहा जरूरी नहीं कि हर बात स्वीकारी जाए,श्यामली न कहो कोई आवश्यकता नहीं है... 
 
नहीं भाभी आज कहने दो ..आपके विशाल हृदय में छिपे दर्द को मैं आज नीलांजना दी के समक्ष रखना चाहती हूं। अपने बीते कल की गलतियों का परिमार्जन तो संभव नहीं ही कर सकूंगी। पर दी प्रायश्चित्त तो अवश्य ही बता देंगी न आप, कह मेरी तरफ मुड़ कर उसने मेरे दोनों हाथ थाम लिए... 
 
फिर कहा आज आपके सामने अपने किए अपराध की स्वीकारोक्ति है... कि मैंने तापसी भाभी के एकनिष्ठ भाव को छला है ,या यूं कहूं कि उनके पति की बेवफाई में बराबर का हिस्सा मेरा भी रहा।  मैंने उनके घर को, उनके प्रेम को बांट लिया छलपूर्वक नहीं अनजाने में... जब तक मैं भाभी से मिली भी नहीं थी मुझे उनकी विशेषताओं के विषय में कुछ भी नहीं पता था कई दफा रोहित से पूछा कि क्या वजह है आप दोनों की दूरी की? 
 
तो वो बस इतना ही कहते थे, कि हम दोनों एक दूसरे के पूरक नहीं हैं। वो मेरी विचारसंगिनी नहीं बन सकी,कोई समस्या नहीं है बस यही समस्या है...वो जैसे साइकिल का पहिया है और मैं रेल का...  हमारा कोई सामंजस्य नहीं है रोहित कहते तापसी को मैं प्यार नहीं करता वो मेरे माता-पिता भाइयों की पसंद रही मेरी नहीं,तुमसे प्यार है मुझको तुम में वो नमक है जो तापसी में नहीं... 
 
सच में नीलांजना दी मैं अब जान सकी हूं...  कि रोहित को तापसी भाभी की आत्मा की शुद्धता से डर लगता था...  इसलि वो मुझ जैसी औरत को वरीयता देते रहे... उन्हे मेरे शरीर से मतलब था और यही कारण रहा कि हम जुड़ गए... 
 
मैं प्रतीक के बाद कब कंधा तलाशते रोहित के प्रेम में पड़ गई मुझे पता ही न चला। हमारे संबंध शारिरिक भी हुए रोहित ही चाहते थे...मैंने पूछा तो कहने लगे तुममें मुझे मेरा हमराज हमनवाज दिखता है.. कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। जब भाभी से मिली तो ये दुख और ग्लानि में बदल गया। कि मैंने इतनी सीधी सरल सात्विक महिला के साथ धोखा किया लगता था कैसे इन्हें बता दूं, क्या नहीं है इनमें. .. मैं इनके सामने कुछ नहीं फिर रोहित ने क्यों धोखा दिया इनको...हालांकि अब नहीं मिलती मैं रोहित से, कई बार उनका मैसेज आता है कि मैं दौरे पर आया हूं मिलना है। पर मैं मना कर देती हूं क्योंकि जब से तापसी भाभी को मैने जाना है,उनके सच से बड़ा मेरा सच नहीं रहा। और मेरा मैं बहुत छोटा सा लगता है... क्या कहूं बस हर जगह बस यही महसूस होता है, कि ये मुझे देख रहीं हैं, तापसी की भाभी बड़ी-बड़ी आंखों से खुद को छिपा नहीं पाती क्योंकि इन्होंने सब जानते हुए भी कभी मुझसे कुछ नहीं कहा,और जाने कैसे जान गईं यह भी मेरे लिए अचरज का विषय है? जब भी मैं इनसे मिलती हूं मुझमें कुछ बदल सा जाता है...मैं चाह कर भी कुछ गलत नहीं कर सकती...

याद है तापसी भाभी जब हम आपके एन जी ओ के काम से खरगौन जा रहे थे, रास्ते में जाम गेट के पास, भुवी और आपकी कितनी तस्वीरे खींची थीं मैंने, आपने कितनी सहृदयता से मुझको बार बार धन्यवाद कहा था। आपके यथा नाम तथा गुण को देखकर स्वयं से नजरें नहीं मिला पाती थी मैं उस दिन ,जब मैंने कहा कि मुझे कुछ कहना है स्टियरिंग पर धरे मेरे हाथों पर आपका वह स्पर्श याद करके, आज भी हृदय गति बढ़ जाती है और आपका शांत शीतल स्वर,आज भी मेरी मज्जा मज्जा गला रहा है आज भी... 
 
आपने कहा कह दो मैं जानती हूं क्या कहना है तुम्हें   
 
मेरी स्वीकारोक्ति से कि मैं और रोहित कभी रिश्ते में थे आप और भुवी दोनों ही स्थिर रहे..क्यों? एक मेरा ही हृदय अपनी जगह से हिल गया.... मैं कैसे कहूं नीलांजना दी कि किस मिट्टी से गढ़ा है ईश्वर ने इनको, ये जानती थीं और सिर्फ़ मेरे मुंह से सुनकर मुझे माफ कर देना चाहतीं थीं ,जो कि इन्होंने कर दिया और मैं तब से खुद की न रही मेरे घर में, मेरे कार्य में ,मेरे भोजन में, ये इस तरह से छा गईं जैसे, मैं हूं ही नहीं बस यही थीं और रहेंगी, मेरा बेटा इनकी सुनता है मेरी आत्मा इनकी सुनती है।  मानो दूसरी औरत मैं नहीं ये हो गईं हैं, मैं रोहित को भूल चुकी हूं पर इनको नहीं निकाल सकती अपनी दुनिया से...कोई ऐसा भी बदला लेता है क्या कि उसका होना ही रहे बस बाकी कुछ भी नहीं... 
 
जब इन्होंने कहा था कि मैं जानती थी तुम्हारे और रोहित के बारे में...  तब जो दृष्टि थी इनकी वो आज भी अपनी पुतलियों में गड़ी पाती हूं.. . 
 
तापसी

श्यामली की स्वीकारोक्ति के बाद चार साल पहले की बड़ी एकादशी के दिन में पहुंच गई थी कितनी खुश थी अपने नए घर की पूजा में सारी व्यवस्था उसने खुद देखी थी। भोग से लेकर घर की सजावट मेहमानों की अभ्यर्थना के तमाम इंतजाम सब उसके माथे था। रोहित तो वैसे भी बहुत व्यस्त रहते थे उनको कहां समय था कि देख पाते बस अमला भिजवा दिया था।  
 
भुवी  और आकाश दोनों भी लगे थे देखरेख में, क्योंकि गृहप्रवेश के साथ साथ तुलसी पूजा भी थी,उसी दौरान रोहित का फोन आया आकाश को... कि मैं जरा काम में फंस गया हूं तो आज देर से आऊंगा,आकाश ने कहा पापा खरगौन है ही कितना दूर कोशिश कीजिए जल्दी आने की..  
 
तो रोहित झुंझला पड़े, अरे मास्टरी नहीं कर रहा हूं कलेक्टर हूं... जब समय होगा आ जाऊंगा तुम लोग तो हो ही....  
 
खैर हमने मिल कर पूजा की, घर में कलश जलाया जो थोड़े बहुत इष्ट मित्र थे उनको भोजन करवा कर मैं और भुवी घर वापस आ गए। आकाश वहीं रहा आया क्योंकि कलश प्रज्वलित रहे तो उसको अकेले नहीं छोड़ सकते थे। उस रात रोहित बहुत देर में आए और फिजूल की चिल्लम चोक करते सो गए... 
 
थके थे तो नींद उनकी भी गहरी थी सुबह करीब 4.30 बजे... अचानक बहुत तेज फोन रिंग से मेरी नींद टूटी... 
 
देखा रोहित के साईड टेबल पर पड़ा मोबाइल बज रहा था... 
 
 रोहित अभी भी गहरी नींद में थे, उठ बैठें, इससे पहले मैंने सोचा मैं ही उठा लूं नहीं तो चार बात और सुना देंगे।  नंबर देखा सेव्ड नहीं था उठाकर मैं कुछ बोलती परली तरफ से थोड़ी दबी सी महिला आवाज थी, रोहित मेरी प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजीटिव है मैंने अभी प्रेगाटेस्ट किया है अब क्या होगा? मैं कैसे संभालूगीं... ..  
 
तुम चुप क्यों हो बोलो.. इसीलिए कल तुमको बुला रही थी महेश्वर, सुबह तक नहीं रोक सकी खुद को.....अच्छा मत बोलो भाभी होंगी पास में शायद... कल बात करते हैं...कह कर उसने फोन रख दिया। 
 
और मैं अपने कानों में पिघलते सीसे की तरह अभी-अभी हुए विस्फोट को बहता हुआ पा रही थी... ये ये आवाज तो श्यामली की थी... हां वो श्यामली ही थी... 
 
अचानक सारे घटनाक्रम मानस पटल पर घूम गए कैप्टन के शहीद होने से लेकर,रोहित का प्रतिदिन महेश्वर जाना और गाहे बगाहे देर से आना आते ही स्नान को जाना फिर मुझसे जनेउ मांगना,उनके स्पर्श में किसी और की छाया का अनुभव एक अजीब से लिजलिजे एहसास से भर आया मन...
 
दौड़ कर वॉशरूम में सिंक पर झुक गई मानो वमन के माध्यम से सारे आमर्ष और क्रोध को बाहर निकाल कर ही चैन मिलेगा। 
 
उस भोर से सब कुछ बदल गया था। तापसी ने रोहित को कुछ नहीं कहा क्योंकि वो जानती थी पुरुष का अहंकार कैसा होता है। सब नष्ट कर देने के बाद भी वो स्वयं की गलती नहीं मानता। तिस पर वो एक प्रतिष्ठित प्रशासनिक अधिकारी हो तब तो क्या ही कहना..
 
उस दिन वो उस आधे अधूरे रिश्ते की दरकती दीवार को भाग्य भरोसे छोड़ चुकी थी और अपने तय किए हुए किनारे पर बहने लगी, उसने नहीं जानना चाहा कि श्यामली और रोहित ने मिलकर और कितनी बार खुद को धोखा दिया बच्चे को कब और कैसे एबॉर्ट करवाया। इस सब से उसने कोई वास्ता नहीं रखा खुद को संभालना उसको उचित जान पड़ा बजाए अपने रिश्ते संभालने के क्योंकि उसकी समझ में यह दो तरफा जिम्मेदारी थी और एक अकेली वो क्यों कर संभालती? 
 
श्यामली अब भी नीलांजना दी का हाथ पकड़े हुए थी और आंखों में आंसू लिए अपने अजन्मे बच्चे के विषय में बता रही थी। उसकी पीड़ा का कण भर भी क्या मेरी व्यथा से बड़ा रहा होगा, नहीं... 

तापसी ने कहा : मैंने बदला लिया हां उसको माफ करके,  उसको प्रेम दे कर उसके धोखे को उसके लिए एक बोझ बना दिया।
 
श्यामली के हाथों में अब भी नीलांजना का हाथ आबद्ध था। उस ऊष्मा में मैं उसके भाव की गहराई को जान पा रही थी। तापसी की आंखें तरल थीं पर चेहरे में निश्चेष्टता थी जैसे बरसात के बाद सूखी धरती से सौंधी सी खुशबू उठती है और उसको हम गहरी श्वास लेते हुए महसूसते हैं, ठीक उसी तरह तापसी बैठी थी श्यामली के घर में और मैं पूरी तरह उसका होना उस दूसरी औरत के घर में पूरी तरह से जज्ब पा रही थी....  
 
क्या कहूं अब जान पा रही हूं यूं टूट कर उसका रोना और यूं अधूरा सा हंसना और जान पा रही हूं श्यामली के घर उसका होना........
 
 
गरिमा मिश्र तोष
 

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