अपने पिता का अंतिम संस्कार कर लौट रहे सिद्धार्थ की आंखों से अविरल धारा बह रही थी। वह अपने साथ वापस हो रही भीड़ के आगे-आगे चल जरूर रहा था, पर उसका मन उसी तेजी से पीछे भाग रहा था। साथी उसके कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना दे रहे थे, पर वह जानता था कि ये आंसू दरअसल उसके मन में चल रहे प्रायश्चित के आंसू भी हैं।
उसे रह-रहकर अफसोस हो रहा था कि वह अपने पिता के कहे अनुसार क्यों नहीं चला? क्यों उसने वह सब किया जिनसे पिता हमेशा दूर रहने के लिए कहते थे?