आज फलाहार नहीं करोगे सुरेश? …आ जाओ भाई लंच का समय निकला जा रहा है। पंकज ने चिंतित स्वर में सुरेश को पुकारा।
सुरेश- 'भाई, फलाहार तो लाया हूं मगर आज खाने का मन नहीं कर रहा, क्योंकि मेरा व्रत टूट गया'!
आश्चर्य से पंकज ने पूरे दिन का फेरा लगाया… अरे कब टूटा व्रत! सुबह से तो हम दोनों साथ में ही काम कर रहे हैं। अन्न का एक दाना न तो मैंने खाया और ना ही तुमने, फिर कैसे टूट गया 'व्रत'?
…यार हुआ यूं कि आज सुबह घर से निकलते वक्त तेरी भाभी से हॉट टॉक हो गई, बस उसी समय मैंने देखा कि मेरे शब्दबाण ने उसके अंतस को भेद दिया। उसकी आंख से कुछ बूंदें साकार हुईं और मेरा व्रत स्वमेव टूट गया।
उपासना
कॉलोनी में सभी की सहभागिता बनी रहे इसलिए आप ही तो कहते थे कि अंशमात्र ही सही सभी का हाथ लगना चाहिए पुण्यकार्य में। अभी तो मां की प्रतिमा, डेकोरेशन, गरबा सभी कुछ तो करना शेष है और आप हैं कि अटैची तैयार कर रहे हैं।
…कहां जा रहे हैं, कुछ तो बताइए? पड़ोस के शर्मा जी, गोयल जी, म्हात्रे जी और मालवीय जी आयोजन के आधार स्तंभ विमल जी को थामे थे।
अरे, आप सभी लोग तो यहीं हैं इस बार आप आयोजन कीजिए, पूर्ण श्रद्धा के साथ। इस बार मैंने ऑफिस से नौ दिन का अवकाश लिया है। पूरे नौ दिन मैं अपनी मां के साथ रहना चाहता हूं, उसके आंचल तले आराधना करना चाहता हूं, इसलिए अपने घर जा रहा हूं।
दशहरा
उल्टी छतरी में मुखौटा लिए वह किशोर मनुहार कर रहा था, ले लो साहब बीस का एक है, दस लोगे तो ठीक लगा दूंगा।
…अरे बाबा नहीं चाहिए, और ये मुझे क्यों बेच रहा है, जानता भी है ये कौन था? बड़ा ज्ञानी, महापराक्रमी था।
किशोर- इसीलिए तो कह रहा हूं, साहब ले लो।
…अरे मगर अब तो यह बुराई का प्रतीक है, मैं क्या करूंगा लेकर!
किशोर- …साहब दस मत लीजिए एक-दो, तो ले लीजिए, कोई एक बुराई तो होगी!
चुटकी काटते ही उस अधेड़ ने सारे ऐब टटोले और मुस्कुरा कर एक-दो नहीं कई मुखौटे खरीद लिए।