प्राय: मनुष्य एक- दूसरे के शत्रु इस कारण नहीं होते कि उनके पास खाने के लिए काफी नहीं है बल्कि इसलिए कि उनकी असीम तृष्णा को शांत करने के लिए दुनिया में काफी नहीं है। जब किसी तीव्र इच्छा की पूर्ति में बाधा आती है तो क्रोध का जन्म होता है। यदि किसी मनुष्य को किसी से भी कुछ नहीं चाहिए तो उसे कभी क्रोध नहीं आएगा।