हरे-भरे वृक्षों का धर्म है हिंदू-भाग 2

गतांक से आगे

पीपल देव : हिंदू धर्म में पीपल का बहुत महत्व है। पीपल के वृक्ष को संस्कृत में प्लक्ष भी कहा गया है। वैदिक काल में इसे अश्वार्थ इसलिए कहते थे, क्योंकि इसकी छाया में घोड़ों को बाँधा जाता था। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। उक्त वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं।

 
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पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन निस्सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।

गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूँ।'
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।
भावार्थ-अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।-पुराण

बरगद या वटवृक्ष : बरगद को वटवृक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में वट सावत्री नामक एक त्योहार पूरी तरह से वट को ही समर्पित है। हिंदू धर्मानुसार चार वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त चार वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।

।।तहँ पुनि संभु समुझिपन आसन। बैठे वटतर, करि कमलासन।
भावार्थ-अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों, यहाँ तक कि देवताओं ने भी वट वृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं।- रामचरित मानस

 
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आम है खास : हिंदू धर्म में जब भी कोई माँगलिक कार्य होते हैं तो घर या पूजा स्थल के द्वार व दीवारों पर आम के पत्तों की लड़ लगाकर मांगलिक उत्सव के माहौल को धार्मिक और वातावरण को शुद्ध किया जाता है। अक्सर धार्मिक पांडाल और मंडपों में सजावट के लिए आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है।

भविष्यवक्ता शमी : विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने अपने 'बृहतसंहिता'नामक ग्रंथ के 'कुसुमलता'नाम के अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में जो जानकारी प्रदान की है उसमें शमीवृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है।

वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है।

वृक्ष की पूजा-परिक्रमा : अक्सर आपने देखा होगा की पीपल और वट वृक्ष की परिक्रमा का विधान है। इनकी पूजा के भी कई कारण है। स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है।

अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।

 
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ज्योतिष अनुसार : शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है।

वृक्ष के नीचे ध्यान : श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। इसके नीचे विश्राम या ध्यान करने से सभी तरह के मानसिक संताप मिट जाते हैं तथा मन स्थिर हो जाता है। स्थिर चित्त ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है या कोई महान कार्य कर सकता है। वृक्ष हमारे मन को स्थिर और शां‍त रखने की ताकत रखते हैं। चित्त की स्थिरता से साक्षित्व या हमारे भीतर का दृष्‍टापन गहराता है। हमारे ऋषि-मुनि, बुद्ध पुरुष, अरिहंत, भगवान आदि सभी पीपल के नीचे बैठकर ही ध्यान करते थे। उक्त वृक्ष के नीचे ही बैठकर बुद्ध और महावीर स्वामी ने तपस्या की तथा वे ज्ञान को उपलब्ध हो गए। पूर्ण दृष्टा हो गए।

रोचक विश्वास : भारत में स्थानीय विश्वासों के आधार पर कई ऐसे वृक्ष हैं जिन्हें भूतों का बसेरा माना जाता है तो कई ऐसे भी वृक्ष है जिनमें देवताओं का निवास होता है। भारत के लोगों में यह धारणा भी प्रचलित है कि चलने वाले और उड़ने वाले पेड़ भी होते हैं। कल्प वृक्ष के संबंध में ऐसी धारणा है कि वह हमारी सभी तरह की मनोकामना की पूर्ति कर देता हैं।

कुछ वृक्षों या पौधे से सोना बनाया जा सकता है तो कुछ ऐसे भी वृक्ष हैं जिनको घर में लगाने से सुख और समृद्धि आती है। तंत्र-मंत्र में विश्वास रखने वाले लोग अक्सर ऐसे वृक्षों की खोज में लगे रहते हैं जिसकी छाल या अन्य किसी हिस्से से वशिकरण का इत्र, गायब होने की बूटिका या आज्ञाचक्र को खोलकर त्रिकालज्ञ बनने की औषधि बनाना चाहते हैं।

अंतत: वेद, पुराण, गीता आदि सभी ग्रंथों में वृक्षों के औषधीय, धार्मिक, पर्यावरण, व्यापारिक, सामाजिक आदि सभी गुणों का महत्व विस्तार से वर्णित किया गया है। वृक्ष या प्राकृतिक सभ्यता के संसाधनों को मनमाने ढंग से नष्ट करने का अभिप्राय मानव सभ्यता को प्रलय की ओर ही ले जाना है। जनता एवं सरकार दोनों का कर्तव्य है कि पेड़-पौधों की संख्या बढ़ाने में योगदान दें। धरती के गर्भ से किए जा रहे खनन को बंद करें और जंगल, नदी, तालाब, पहाड़ तथा समुद्र को उसके स्वाभाविक प्राकृतिक रूप में रहने दिया जाए। (समाप्त)

हरे-भरे वृक्षों का धर्म है हिंदू-1

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