चेटीचंड जयंती 2023 : भगवान झूलेलाल के संबंध में 10 रोचक बातें
गुरुवार, 23 मार्च 2023 (11:01 IST)
चेटी चंड सिंधी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व है। इसी दिन भगवान झूलेलाल का अवतरण हुआ था। झूलेलाल की जयंती चैत्र शुक्ल माह की द्वितीया को आती है। कुछ लोग झूलेलाल चालीहा उत्सव भी मनाते हैं यानी 40 दिन तक व्रत-उपवास रखकर आराधना करते हैं। सिंध प्रांत के हिन्दुओं में झूलेलाल को पूजने पूजने की बहुत मान्यता है। सिंध प्रांत के हिन्दुओं को सिंधी कहा जाता है। आओ जानते उनके बारे में 10 खास बातें।
1. वरुण के अवतार : भगवान झूलेलाल हिन्दूदेव वरुणदेव के अवतार माने जाते हैं। सिंध प्रांत के हिन्दुओं को मुस्लिम अत्याचार से बचाने के लिए ही इनका अवतार हुआ था। यह एक चमत्कारिक संत थे।
2. जिन्दह पीर : झुलेलालजी को जिन्दपीर, लालशाह, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल, उदेरोलाल, घोड़ेवारो भी कहते हैं। इन्हें मुसलमान भी ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से पूजते हैं। पाकिस्तानी सिंधी लोग इन्हें 'प्रभु लाल साईं' कहते हैं।
3. जन्म समय : चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया संवत 1007 को उनका जन्म नसरपुर के ठाकुर रतनराय के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम देवकी था।
4. जन्म नाम : उनके माता पिता ने उनका नाम 'लाल उदयराज' रखा था। लोग उन्हें उदयचंद भी कहते थे।
5. झूलेलाल महोत्सव : सिंध प्रांत के हिन्दुओं जिन्हें सिंधी कहा जाता है, उनके लिए चेटीचंड सबसे बड़ा पर्व है। भगवान झूलेलाल का अवतरण इसी दिन हुआ था।
6. पूजा : जो भी भक्त 4 दिन तक विधि- विधान से भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना करते हैं, वह सभी दुःखों से दूर हो जाता है। कुछ लोग झूलेलाल चालीहा उत्सव मनाते हैं। अर्थात 40 दिन तक व्रत उपवास रखते हैं।
7. झूलेलाल का समाधी स्थल : पाकिस्तान के नसरपुर में झूलेलाल का प्रसिद्ध समाधी मंदिर है। हालांकि यह मंदिर अब दरगाह के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। यहां दुनियाभर से लोग आकर माथा टेकते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं।
8. क्यों लिया अवतार : सिंध प्रांत में मिरक शाह नामक एक क्रूर मुस्लिम राजा के अत्याचार और हिन्दू जनता को समाप्त करने के कुचक्र के चलते झूलेलाल का 10वीं सदी में अवतार हुआ और उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का पाठ पढ़ाया।
9. झुलेलाल जी की कहानी : जन्म से ही चमत्कारिक बालक होने की प्रसिद्धि के चलते मिरक शाह को लगा कि यह बालक संभवत: मेरी मौत का करण बन सकता है। अत: शाह ने उदयराज को समाप्त करवाने की योजना बनाई। शाह दल-बल सहित उदयराज को मारने के लिए निकले ही थे लेकिन उदयराज ने अपनी दिव्य शक्ति से शाह के महल में आग का कहर बरपा दिया और शाह की सेना बेबस हो गई। सेनापतियों ने देखा कि सिंहासन पर 'लाल उदयराज' बैठे हैं। जब महल भयानक आग से जलने लगा तो बादशाह भागकर 'लाल उदयराज' के चरणों में गिर पड़ा।
'लाल उदयराज' की शक्ति से प्रभावित होकर ही मिरक शाह ने शांति का रास्ता अपनाकर सर्वधर्म समभाव की भावना से कार्य किया और बादशाह ने बाद में उनके लिए एक भव्य मंदिर भी बनाकर दिया था।