फाल्गुन माह की पूर्णिमा में होलिकात्सव मनाया जाता है। यह त्योहार होलिका दहन से प्रारंभ होता है और रंगपंचमी तक चलता है। बीच में धुलेंडी आती है। पूरे देश में होली और रंगपंचमी को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली काफी प्रसिद्ध होती है।
1.वसंत का आगम : इस त्योहार से वसंत ऋतु का प्रारंभ होता है। इस ऋतु आगम के स्वागत के लिए गांवों में प्रकृति पूजा होती है। ब्रज में रंगों के त्योहार होली की शुरुआत वसंत पंचमी से प्रारंभ हो जाती है। इसी दिन होली का डांडा गढ़ जाता है। इस ऋतु में होली, धुलेंडी, रंगपंचमी, बसंत पंचमी, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती और गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें से रंगपंचमी और बसंत पंचमी जहां मौसम परिवर्तन की सूचना देते हैं वहीं नव-संवत्सर से नए वर्ष की शुरुआत होती है।
2. प्रहलाद की याद में मनाते हैं होली : यह उत्सव विष्णु भक्त प्रहलाद की याद में मनाया जाता है। इस दिन हिरण्यकश्यप की ब्रह्मा से नहीं जलने का वरदान प्राप्त बहिन होलिका भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ थी, लेकिन होलिका जल गई और प्रहलाद बच गए थे। इसीलिए होलिका दहन के समय होलिका और भक्त प्रहलाद की पूजा की जाती है।
3. भांग का मजा : होलिका दहन से रंगपंचमी तक भांग, ठंडाई आदि पीने का प्रचलन हैं। लोग मजे से भांग छानते हैं और रंगों को उत्सव मनाते हैं। इस दिन फाग गाते हैं और रंगारंग कार्यक्रम किए जाते हैं। होली गीत के कार्यक्रम के दौरान ठंडाई और मिठाई का वितरण कियाजाता है।
4. धुलेंडी का रंग : होलिका दहन के बाद धुलेंडी अर्थात धूलिवंदन मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं। मिठाइयां बांटते हैं। भांग का सेवन करते हैं। कुछ राज्यों में इस दिन उन लोगों के घर जाते हैं जहां गमी हो गई है। उन सदस्यों पर होली का रंग प्रतिकात्म रूप से डालकर कुछ देर वहां बैठा जाता है। कहते हैं कि किसी के मरने के बाद कोईसा भी पहला त्योहार नहीं मनाते हैं।