होलाष्टक के दिनों में विवाह, नामकरण, विद्या प्रारंभ, गृह प्रवेश, भवन निर्माण, हवन, यज्ञ आदि कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है। लेकिन जन्म और मृत्यु के बाद किए जाने वाले कार्य कर सकते हैं।
होलाष्टक के प्रथम दिन यानी कि फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु अपने उग्र रूप में होता है। जिस कारण मानव मस्तिष्क तमाम तरह के विकारों और परेशानियों से घिरा रहता है। इसलिए इस दौरान कोई भी काम बिगड़ने के ज्यादा आसार रहते हैं।