भद्रा पुंछा - सुबह 09 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 51 मिनट तक
भद्रा मुखा : सुबह 10 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक
होलिका दहन कथा
शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन की परंपरा भक्त और भगवान के संबंध का अनोखा एहसास है। कथानक के अनुसार भारत में असुरराज हिरण्यकश्यप राज करता था। उनका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप विष्णु द्रोही था।
हिरण्यकश्यप ने पृथ्वी पर घोषणा कर दी थी कि कोई देवताओं की पूजा नहीं करेगा। केवल उसी की पूजा होगी, लेकिन भक्त प्रहलाद ने पिता की आज्ञा पालन नहीं किया और भगवान की भक्ति लीन में रहा। हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद की हत्या कराने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया तो उसने योजना बनाई। इस योजना के तहत उसने बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को वरदान मिला था, वह अग्नि से जलेगी नहीं।
योजना के तहत होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान ने भक्त प्रहलाद की सहायता की। इस आग में होलिका तो जल गई और भक्त प्रहलाद सही सलामत आग से बाहर आ गए। तब से होलिका दहन की परंपरा है।
होलाष्टक
होलाष्टक 02 मार्च से शुरु होकर 09 मार्च को समाप्त होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य (शादी, विवाह, वाहन खरीदना या घर खरीदना, अन्य मंगल कार्य) नहीं किए जाते हैं। हालांकि इस दौरान पूजा पाठ करने और भगवान का स्मरण और उनके भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।