होली की हुड़दंग में (दोहे)

होली की हुड़दंग में, झूम सृजन के संग।
फागुन बिखराने लगा, होली वाले रंग।।


 
होली की हुड़दंग में, रंग-अबीर-गुलाल।
मुख पर छा इठला रहे, करने लगे धमाल।।
 
होली की हुड़दंग में, मन भाई जब भंग।
वासंती होने लगा, जीवन का हर रंग।।
 
होली की हुड़दंग में, गाया जब से फाग।
तन-मन से झरने लगी, टेसू वाली आग।।
 
होली की हुड़दंग में, कच्चे-पक्के रंग।
मर्यादा को तोड़कर, कर देते हैं संग।।
 
होली की हुड़दंग में, मांदल वाली थाप।
कदमों में थिरकन भरे, दे यौवन को ताप।।
 
होली की हुड़दंग में, शहर हुए तब्दील।
गांवों पर रंगत चढ़ी, हुई गुलाबी झील।।
 
होली की हुड़दंग में, ऐसा हुआ कमाल।
कहते थे सुंदर जिसे, हैं वे सुंदरलाल।।
 
होली की हुड़दंग में, सभी हुए हैं भांड।
भेदभाव को भूलकर, बांट रहे हैं खांड।।
 
होली की हुड़दंग में, कह मत खोटी बात।
प्रेम-रंग में डूबकर, बांट सृजन सौगात।।
 
होली की हुड़दंग में, संज्ञा हुई अनाम।
सर्वनाम के साथ लग, है उपमा बदनाम।।
 
होली की हुड़दंग में, है थिगड़े पैबंद।
इनसे ही होते सृजन, मुस्कानों के छंद।।
 
- संदीप 'सृजन'
संपादक- 'शब्द प्रवाह'

 
 

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