होली पर अक्सर हुड़दंग रहती है। अक्सर यह देखा गया है कि होली खेलने के बाद कई लोगों को आंखों में जलन होती है तो कईयों की त्वचा खराब हो जाती है। कई दिनों तक शरीर पर जमा रंग निकलता नहीं है। ऐसे में प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करना चाहिए।
प्राकृतिक रंगों के उपयोग से आपका शरीर खराब नहीं होगा और साथ ही घर, लॉबी और सड़क भी सुरक्षित रहेगी।
1.सूखा रंग : प्राकृतिक रंगों के साथ ही बाजार में सूखा रंग भी मिलता है। जैसे गुलाल, अबीर आदि। सूखे रंगों का अधिक प्रयोग करें। ये रंग आसानी से साफ हो जाते हैं। इन रंगों में पानी का उपयोग भी करेंगे तो कोई खास असर नहीं होगा।
2.फूलों के रंग : पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। आजकल भी ग्रामिण क्षेत्र में ऐसे रंग मिलते हैं।
3. कैसे बनाएं रंग :
* टेशू के फूलों को रातभर पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह तक पानी का रंग नारंगी हो जाएगा।
* आप सुखे लाल चंदन को लाल गुलाल की तरह उपयोग में ले सकते हैं। दो छोटे चम्मच लाल चंदन पावडर को पांच लीटर पानी में डालकर उबालें।
* जासवंती के फूलों को सुखाकर उसका पावडर बना लें और इसकी मात्रा बढ़ाने के लिए आटा मिला लें।
* अनार के छिलकों को पानी में उबालकर भी रंग बनाए जा सकते हैं।
* गुलमोहर की पत्तियों को सुखाकर महीन पावडर कर लें। इसे आप हरे रंग की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
* पालक, धनिया और पुदीने की पत्तियों का पेस्ट पानी में घोलकर गीला हरा रंग बनाया जा सकता है।
* चुकन्दर को किस लें और इसे पानी में रातभर के लिए भिगो दें। इससे गहरा गुलाबी रंग तैयार हो जाएगा।
* जामुन को बारीक पीस लें और पानी मिला लें। इससे नीला रंग तैयार हो जाएगा।