कैसे गाड़ते है होलिका डांडा?
होली का डांडा एक प्रकार का पौधा होता है, जिसे सेम का पौधा कहते हैं। कहीं से भी 2 पौधे लाए जाते हैं जिनकी ऊंचाई करीब 4 से 6 फीट हो सकती है। इन्हें लाकर चौराहे पर एक छोटा सा गड्डा खोदकर गाड़ा जाता है। इससे पहले उन दोनों डांडा को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। फिर दोनों की पूजा की जाती है। होलाष्टक की शुरुआत में 2 डांडा रोपणकर इस उत्सव की शुरुआत की जाती हैं। एक डांडा होलिका का प्रतीक है जो प्रहलाद की बुआ थी और दूसरा डांडा प्रहलाद का प्रतीक है।
होलिका दहन कैसे करते हैं?
फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के पहले होली के डांडा को निकाल लिया जाता है। उसकी जगह लकड़ी का डांडा लगाया जाता है। होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय 4 मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिए, तीसरी शीतला माता और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए सूत के धागे को लपेटा जाता है। होलिका की परिक्रमा 3 या 7 बार की जाती है।इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक-एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। फिर अग्नि प्रज्वलित करने से पूर्व जल से अर्घ्य दिया जाता है। होलिका दहन के समय मौजूद सभी पुरुषों को रोली का तिलक लगाया जाता है। अगले दिन सुबह थोड़ा जल छिड़करकर होली को ठंडा भी किया जाता है। कहते हैं, होलिका दहन के बाद जली हुई राख को अगले दिन प्रात:काल घर में लाना शुभ रहता है। अनेक स्थानों पर होलिका की भस्म का शरीर पर लेप भी किया जाता है।
पूजन सामग्री सूची:-
प्रहलाद की प्रतिमा, गोबर से बनी होलिका, 5 या 7 प्रकार के अनाज (जैसे नए गेहूं और अन्य फसलों की बालियां या सप्तधान्य- गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर), 1 माला, और 4 मालाएं (अलग से), रोली, फूल, कच्चा सूत, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, मीठे पकवान, मिठाइयां, फल, गोबर की ढाल, बड़ी-फुलौरी, एक कलश जल आदि।