वे 10 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जिनका योगदान किताबों में दर्ज नहीं है
हमारे ख्यातनाम स्वतंत्रता सेनानियों के अलावा ऐसे बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं जिनके नाम इतिहास की किताबों के पन्नों से गायब हैं। या लोग इन लोगों के बारे में बहुत कम जानते हैं, नीचे ऐसे ही कुछ गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों और शहीदों के बारे में जानकारी दी जा रही है। यह भी हमारे नायक हैं लेकिन ये गुमनामी के अंधेरे में रहे हैं हालांकि जहां तक त्याग और तपस्या की बात है तो इन्होंने सुप्रसिद्ध लोगों से कम बलिदान नहीं दिए हैं।
उन्होंने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि वे प्रसिद्ध हुए या गुमनाम बने रहे क्योंकि उन सभी का उद्देश्य देश को आजादी दिलाना था। इस देश के नागरिक होने के कारण हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि हम उन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में भी जानें जोकि गुमनामी में रहते हुए देश सेवा का अपना काम करते रहे।
1. मातंगिनी हाजरा- एक ऐसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थी जिन्होंने भारत छोडो आंदोलन और असहयोग आंदोलन के दौरान भाग लिया था। एक जुलूस के दौरान वे भारतीय झंडे को लेकर आगे बढ़ रही थीं और पुलिसकर्मियों ने उनपर गोली चला दी। उनके शरीर में तीन गोलियां लगीं फिर भी उन्होंने झंडा नहीं छोड़ा और वे 'वंदे मातरम्' ने नारे लगाती रहीं।
2. बेगम हजरत महल-अवध के नवाब की पत्नी बेगम हजरत महल 1857 के विद्रोह की सक्रिय नेता थीं। जब उनके पति को देश से बाहर निकाल दिया तो उन्होंने अवध का शासन संभाल लिया और विद्रोह के दौरान उन्होंने लखनऊ को अंग्रेजी नियंत्रण से छीन भी लिया था। लेकिन विद्रोह के कुचले जाने के बाद बेगम हजरत महल को भारत छोड़कर नेपाल में रहना पड़ा, जहां उनका देहांत हुआ था।
3. सेनापति बापट- सत्याग्रह के एक नेता होने के कारण उन्हें सेनापति कहा जाता था। स्वतंत्रता के बाद पहली बार उन्हें पुणे में भारतीय ध्वज को फहराने का सम्मान मिला था। तोड़फोड़ और सरकार के खिलाफ भाषण करने के कारण उन्होंने खुद की गिरफ्तारी दी थी। वे एक सत्याग्रही थे जोकि हिंसा का मार्ग नहीं चुन सकता था।
4. अरुणा आसफ अली- बहुत ही कम लोगों ने उनके बारे में यह सुना होगा कि जब वे 33 वर्ष की थीं तब उन्होंने सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज फहराया था।
5. पोटी श्रीरामुलू- वे महात्मा गांधी के कट्टर समर्थक और भक्त थे। जब गांधीजी के देश और मानवीय उद्देश्यों के प्रति उनकी निष्ठा देखी तो कहा था कि ' अगर मेरे पास श्रीरामुलू जैसे 11 और समर्थक आ जाएं तो मैं एक वर्ष में स्वतंत्रता हासिल कर लूंगा।'
6. भीकाजी कामा- देश के कई शहरों में उनके नाम पर बहुत सारी सड़कें और भवन हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि वे कौन थीं और उन्होंने क्या काम किया? कामा ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान किया वरन वे भारत जैसे देश में लैंगिक समानता की पक्षधर एक नेता थीं। उन्होंने अपनी सम्पत्ति का एक बड़ा भाग लड़कियों के लिए अनाथालय बनाने पर खर्च किया था। वर्ष 1907 में उन्होंने इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस, स्टुटगार्ट (जर्मनी) में भारत का झंडा फहराया था।
7. तारा रानी श्रीवास्तव- बिहार के सीवान नगर के पुलिस थाने पर उन्होंने अपने पति के साथ एक जुलूस का नेतृत्व किया था। उन्हें गोली मार दी गई थी लेकिन वे अपने घावों पर पट्टी बांधकर आगे चलती रहीं। जब वे लौंटी तो उनकी मौत हो गई थी। लेकिन मरने से पहले वे देश के झंडे को लगातार पकड़े रहीं।
8. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी- उन्हें कुलपति के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की थी। वे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और विशेष रूप से भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बहुत सक्रिय रहे थे। स्वतंत्र भारत के प्रति उनके प्रेम और त्याग के कारण वे अनेक बार जेल गए।
9. पीर अली खान- कमलादेवी देश की ऐसी पहली महिला थीं जिन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा था। साथ ही, वे पहली ऐसी महिला थीं जिन्हें अंग्रेज शासन ने गिरफ्तार किया था। उन्होंने एक सामाजिक सुधारक के तौर पर बड़ी भूमिका निभाई और उन्होंने भारतीय महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए हस्तशिल्प, थिएटर और हैंडलू्म्स (हथकरघे) को बहुत बढ़ावा दिया।
10. कमलादेवी चट्टोपाध्याय - वे भारत के शुरुआती विद्रोहियों में से एक थे और उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उन्हें 14 अन्य लोगों के साथ फांसी की सजा दी गई थी।