मैं हूं आपका राष्ट्रध्वज.....मेरा अपमान मत कीजिए...
प्यारे भारतवासियों,
मैं आपका अपना राष्ट्रध्वज तिरंगा बोल रहा हूं। गुलामी की काली स्याह रात के अंतिम प्रहर जब स्वतंत्रता का सूर्य निकलने का संकेत प्रभात बेला ने दिया, तब 22 जुलाई 1947 को भारत की संविधान सभा के कक्ष में पं. जवाहरलाल नेहरू ने मुझे विश्व एवं भारत के नागरिकों के सामने प्रस्तुत किया, यह मेरा जन्म-पल था।
मुझे भारत का राष्ट्रध्वज स्वीकार कर सम्मान दिया गया। इस अवसर पर पं. नेहरू ने बड़ा मार्मिक भाषण भी दिया तथा माननीय सदस्यों के समक्ष मेरे दो स्वरूप- एक रेशमी खादी व दूसरा सूती खादी से बना- प्रस्तुत किए। सभी ने करतल ध्वनि के साथ मुझे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया।
इससे पहले 23 जून, 1947 को मुझे आकार देने के लिए एक अस्थायी समिति का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष थे डॉ. राजेन्द्रप्रसाद तथा समिति में उनके साथ थे मौलाना अबुल कलाम आजाद, के.एम. पणिक्कर, श्रीमती सरोजिनी नायडू, के.एम. मुंशी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और डॉ. बी.आर. आम्बेडकर। विस्तृत विचार-विमर्श के बाद मेरे बारे में स्पष्ट निर्णय लिया गया।
प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर कमल थेे। सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तृतीय ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया । यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी।
मेरे रंग-रूप, आकार, मान-सम्मान, फहराने आदि के बारे में मानक तय हुए। अंततः 18 जुलाई 1947 को मेरे बारे में अंतिम निर्णय हो गया और संविधान सभा में स्वीकृति प्राप्ति हेतु पं. जवाहरलाल नेहरू को अधिकृत किया, जिन्होंने 22 जुलाई 1947 को सभी की स्वीकृति प्राप्त की और मेरा जन्म हुआ।
21 फीट लंबाई और 14 फीट चौड़ाई। यह राष्ट्रध्वज का सबसे बड़ा आकार है जो मानक आकारों में शामिल है लेकिन इसे आज तक कहीं फहराया नहीं गया है। आजादी के समय न तो इतने विशाल भवन थे और न इतना बड़ा कहीं दंड था कि इस ध्वज को फहराया जा सके। वर्तमान में विशाल भवनों के निर्माण के बाद संभव है कि इस आकार के ध्वज को भविष्य में कहीं फहराया जाए।
आजादी के दीवानों के बलिदान व त्याग की लालिमा मेरी रगों में बसी है। इन्हीं दीवानों के कारण मेरा जन्म संभव हुआ। 14 अगस्त 1947 की रात 10.45 पर काउंसिल हाउस के सेंट्रल हॉल में श्रीमती सुचेता कृपलानी के नेतृत्व में 'वंदे मातरम्' के गायन से कार्यक्रम शुरू हुआ।
संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद व पं. जवाहरलाल नेहरू के भाषण हुए। इसके पश्चात् श्रीमती हंसाबेन मेहता ने अध्यक्ष राजेन्द्रप्रसाद को मेरा सिल्क वाला स्वरूप सौंपा और कहा कि आजाद भारत में पहला राष्ट्रध्वज जो इस सदन में फहराया जाएगा, वह भारतीय महिलाओं की ओर से इस राष्ट्र को एक उपहार है। सभी लोगों के समक्ष मेरा यह पहला प्रदर्शन था। 'सारे जहाँ से अच्छा' व 'जन-गण-मन' के सामूहिक गान के साथ यह समारोह सम्पन्न हुआ।
पंडित नेहरू ने मेरे मानक बताए, जिन्हें आपको जानना जरूरी है (जिनका उल्लेख भारतीय मानक संस्थान के क्रमांक आई.एस.आई.-1-1951, संशोधन 1968 में किया गया)। उन्होंने कहा भारत का राष्ट्रध्वज समतल तिरंगा होगा। यह आयताकार होकर इसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 2:3 होगा, तीन रंगों की समान आड़ी पट्टिका होगी। सबसे ऊपर केसरिया, मध्य में सफेद तथा नीचे हरे रंग की पट्टी होगी। सफेद रंग की पट्टी पर मध्य में सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ का चौबीस शलाकाओं वाला चक्र होगा, जिसका व्यास सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के बराबर होगा।
मेरे निर्माण में जो वस्त्र उपयोग में लाया जाएगा, वह खादी का होगा तथा यह सूती, ऊनी या रेशमी भी हो सकता है, लेकिन शर्त यह होगी कि सूत हाथ से काता जाएगा एवं हाथ से बुना जाएगा। इसमें हथकरघा सम्मिलित है। सिलाई के लिए केवल खादी के धागों का ही प्रयोग होगा। नियमानुसार मेरे लिए खादी के एक वर्ग फीट कपड़े का वजन 205 ग्राम होना चाहिए।
मेरे निर्माण के लिए हाथ से बनी खादी का उत्पादन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के एक समूह द्वारा पूरे देश में मात्र ‘गरग’ गाँव में किया जाता है जो उत्तरी कर्नाटक के धारवाड़ जिले में बेंगलूर-पूना रोड पर स्थित है। इसकी स्थापना 1954 में हुई, परन्तु अब मेरा निर्माण क्रमश: ऑर्डिनेंस क्योरिंग फैक्टरी शाहजहाँपुर, खादी ग्रामोद्योग आयोग मुम्बई एवं खादी ग्रामोद्योग आयोग दिल्ली में होने लगा है। निजी निर्माताओं द्वारा भी राष्ट्रध्वज का निर्माण किए जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन मेरे गौरव व गरिमा को दृष्टिगत रखते हुए यह जरूरी है कि मुझ पर आई.एस.आई. (भारतीय मानक संस्थान) की मुहर लगी हो।
मेरे रंगों का अर्थ भी स्पष्ट है। केसरिया रंग साहस और बलिदान का, सफेद रंग सत्य और शांति का तथा हरा रंग समृद्धि व शौर्य का प्रतीक है।
इसे यूं भी समझा जा सकता है केसरिया रंग देशशक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
चक्र
मेरे मध्य में स्थित धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है। यानी चौबीस शलाकाओं वाला नीला चक्र 24 घंटे सतत् प्रगति का प्रतीक है और प्रगति भी ऐसी जैसे नीला अनन्त विशाल आकाश एवं नीला अथाह गहरा सागर।
विशेष परिस्थिति
राष्ट्रीय उल्लास के पर्वों पर अर्थात् 15 अगस्त, 26 जनवरी के अवसर पर किसी राष्ट्र विभूति का निधन होता है तथा राष्ट्रीय शोक घोषित होता है, तब मुझे झुका दिया जाना चाहिए, लेकिन मेरे भारतवासियों इन दिनों सभी जगह कार्यक्रम एवं ध्वजारोहण सामान्य रूप से होगा, लेकिन जहाँ जिस भवन में उस राष्ट्र विभूति का पार्थिव शरीर रखा है, वहाँ उस भवन का ध्वज झुका रहेगा तथा जैसे ही पार्थिव शरीर अंत्येष्टि के लिए बाहर निकालते हैं, वैसे ही मुझे पूरी ऊँचाई तक फहरा दिया जाएगा।
शवों पर लपेटना
राष्ट्र पर प्राण न्योछावर करने वाले फौजी रणबाँकुरों के शवों पर एवं राष्ट्र की महान विभूतियों के शवों पर भी मुझे उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए लपेटा जाता है, तब मेरी केसरिया पट्टी सिर तरफ एवं हरी पट्टी जंघाओं की तरफ होना चाहिए, न कि सिर से लेकर पैर तक सफेद पट्टी चक्र सहित आए और केसरिया और हरी पट्टी दाएँ-बाएँ हों। याद रहे शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के शव के साथ मुझे जलाया या दफनाया नहीं जाए, बल्कि मुखाग्नि क्रिया से पूर्व या कब्र में शरीर रखने से पूर्व मुझे हटा लिया जाए।
नष्टीकरण
अमानक, बदरंग कटी-फटी स्थिति वाला मेरा स्वरूप फहराने योग्य नहीं होता। ऐसा करना मेरा अपमान होकर अपराध है, अतः वक्त की मार से जब कभी मेरी ऐसी स्थिति हो जाए तो मुझे गोपनीय तरीके से सम्मान के साथ अग्नि प्रवेश दिला दें या वजन/रेत बाँधकर पवित्र नदी में जल समाधि दे दें। इसी प्रकार पार्थिव शरीरों पर से उतारे गए ध्वजों के साथ भी करें।
मेरा अपमान
मुझे पानी की सतह से स्पर्श कराना, भूमि पर गिराना, फाड़ना, जलाना, मुझ पर लिखना तथा मेरा व्यावसायिक उद्देश्य से उपभोक्ता वस्तु पर प्रयोग अपराध होता है। मुझे झुकाना भी मेरा अपमान कहलाता है।