पंगत में एक सब्जी के लिए दो दोने लगवाने का, बारात में प्रेस किए हुए कोट पर दुबारा प्रेस कराने का, साले से पान मँगवाने का, साली को धौल जमाने का मजा ही कुछ और है। हँसी के ठहाकों और हास्य की फुहारों के बीच जब ओम व्यास ओम हिन्दी काव्य मंचों पर खड़े होकर अपना काव्य पाठ करते तो सारा कवि सम्मेलन ही लूट ले जाते।
हास्य के साथ ही साथ व्यंग्य से भीतर तक भेद देने वाली गंभीर से गंभीर बात कह देने वाली वह दिलकश आवाज अब हिन्दी काव्य मंचों पर कभी सुनाई नहीं देगी। मध्यप्रदेश ही नहीं संपूर्ण भारत ही नहीं दुनिया के अनेक देशों में हजारों-हजार रातों से गमों और रुसवाइयों को हराकर 'हास्य मेव जयते' का नारा देने वाला कवि ओम व्यास खुद इस संघर्ष में मृत्यु से हार गया।
ओम तो वो चीज थी कि उसकी हर बात और कविता पर श्रोताओं मे बैठे मंत्री, कलेक्टर, उद्योगपति और डॉक्टर भी उतना ही जोरदार ठहाका लगाते थे जितना कि एक मूँगफली बेचने वाला। खास हो या आम, नर हो या नारी सबके दिल के अंदर तक उतर जाते थे उसके अंदाज।
ओम से जब भी बात होती थी कहते थे यार अच्छी कविता तो 'तुवर की दाल' की तरह होना चाहिए जो सबकी पसंदीदा है। भिंडी की सब्जी या फिर करेला नहीं जो चुनिंदा लोग ही खाते हों। लालू यादव तो उन पर इतने फिदा थे कि उन्होंने ओम को रेलवे एसी टू टीयर का संपूर्ण भारत यात्रा का एक पास ही बना दिया था वो भी एक सहयोगी के साथ।
वे हमसे दूर चले गए बेहद दूर बकौल ओम- 'दोस्त-यार सब याद रहे सगे भाई को भूल गए, कुत्ते को घुमाना याद रहा पर गाय की रोटी भूल गए और साली का जन्मदिन याद रहा माँ की दवाई भूल गए।'