कुंभ में कल्पपादप या कल्पवृक्ष दान

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013 (14:12 IST)
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इसका वर्णन मत्स्य और लिंग पुराण में किया गया है। तरह-तरह के फलों, वस्त्रों और आभूषणों से कल्पवृक्ष बनाया जाता है। इसमें दान देने वाला अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोने का इस्तेमाल करता है।

आधे सोने से कल्पवृक्ष बनाया जाता है। उसमें ब्रह्मा, विष्णु और सूर्य की आकृति बनाई जाती है। इसमें पांच शाखाएं रखी जाती है। बचे हुए आधे सोने की चार टहनियां बनाई जाती है। इन्हें सिलसिलेवार पूरब, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में रख दिया जाता है।

कल्पवृक्ष के नीचे कामदेव और उसकी चार स्त्रियों की स्वर्णमूर्ति रखी जाती है। जल से भरे हुए आठ घड़े, वस्त्र से ढंक कर रखे जाते हैं। दीपक, चंवर और छत्र भी रखा जाता है। इनके साथ अठारह अनाज रखे जाते हैं। फिर संसार सागर से पार कराने के लिए कल्पवृक्ष से प्रार्थना की जाती है।

स्तुति के बाद कल्पवृक्ष गुरु को और चार टहनियां चार पुरोहित को दी जाती है। संतानहीन स्त्री-पुरुषों को यह दान करना चाहिए। इस दान से उनकी मनोकामना पूरी होती है।

महाकल्पलता दान : इसका वर्णन मत्स्य पुराण में किया गया है। इसमें तरह-तरह के फूलों और फलों की आकृतियों वाली सोने की दस कल्पलताएं बनाई जाती हैं।

इसमें विद्याधरों की जोड़ियों, देवताओं, लोकपालों के समान देवताओं और अनेक शक्तियों की आकृतियां बनाई जाती है। सबसे ऊपर एक चंदोवे की आकृति बनाई जाती है।

वेदी पर गोला बनाया जाता है। उसके बीच दो कल्पलताएं रखी जाती हैं। आठ दिशाओं में बाकी आठ कल्पलताएं रख दी जाती है। इसके साथ मंगल घट और दस गायों का दान भी किया जाता है।
- वेबदुनिया संदर्भ

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