बदल रहा है कुंभ का रूप

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हरिद्वार में जहाँ एक ओर अखाड़ों की तमाम परंपराएँ श्रद्धालुओं के बीच जोर-शोर से निभाई जा रही हैं वहीं अखाड़ों के हठयोगियों का हठ भी कुंभ का आकर्षण बन चुका है। पिछले दिनों महानिर्वाणी अखाड़े में दो बाल संतों को संन्यास की दीक्षा दिलाना कुछ हद तक विवाद का विषय भी बन गया। नौ वर्षीय गौरवानंद भारती एवं पाँच वर्षीय केशवानंद गिरि नामक दो बालकों को अखाड़ों में शामिल कराने के बाद बाल अधिकारों का मामला भी जोर पकड़ रहा है। इनमें से एक देहरादून का है तो दूसरा बदायूँ का रहने वाला है।

गौरवानंद को दीक्षा देने वाले संतोष भारती का कहना है कि यह बच्चा अनाथ है और बदायूं के एक पुजारी ने उसे उनके पास छोड़ा है। इसे वस्त्रधारी संन्यासी के रूप में दीक्षित किया गया है। इसको पढ़ाने-लिखाने का सिलसिला शुरू किया जा चुका है। वयस्क होने पर इसे नागा संन्यासी की दीक्षा मिलेगी। वहीं केशवानंद गिरि को सिद्धेश्वर मंदिर के हनुमान बाबा ने दीक्षा दी है। बाबा के अनुसार यह बच्चा उनके परिवार की परंपरा के अनुरूप ही दीक्षित किया गया है। राष्ट्रीय बाल आयोग की सदस्य संध्या बजाज ने दोनों मामले में उत्तराखंड सरकार से भी रिपोर्ट तलब किए जाने की बात स्वीकार की है।

देश भर के साधु-संतों के हरिद्वार आगमन से बाजार का रूप भी निखर गया है। चिलम के शौकीन बाबाओं को आनंद पहुँचाने के लिए हरियाणा के कुछ चिलम निर्माता भी यहाँ आए हैं। जगह-जगह कई मुखों वाली चिलम बेची जा रही हैं जो पांच रुपए से लेकर पाँच सौ रुपए मूल्य तक की हैं। गंगाजल रखने के लिए कई कंपनियाँ बाजार में कलश उतार चुकी हैं। कुंभ में कई हठयोगियों के भी दर्शन कर श्रद्धालु अपने को धन्य मान रहे हैं। ऐसे ही एक हठयोगी हैं ऊर्ध्वबाहु बाबा। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है बाबा हमेशा हाथ खड़े रखते हैं। उनका कहना है कि अखाड़े में ऐसे बहुत से संत हैं जो अनूठे हठ योग में सिद्धहस्त हैं।

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जूना अखाड़े से जुड़े ऊर्ध्वबाहु बाबा ने अपने अखाड़े के हित में यह हठयोग लिया है। पिछले 27 वर्षों से हाथ उठाए रखने के कारण बाबा का पंजा सूख चुका है। ऊँगलियों पर फुट भर लंबे नाखून छल्ले की तरह मुड़ गए हैं। इसके अलावा ठंड की परवाह किए बगैर गंगा में खड़े होकर तपस्यारत बाबा भी कुंभ में दिख रहे हैं। जटाधारी व भभूत लपेटे नंग-धड़ंग साधुओं के हैरतअंगेज करतब और हर-हर महादेव की ध्वनियों ने पेशवाइयों का माहौल शाही बना दिया है।

घोड़े, हाथी, पालकी तो शाही जुलूसों में थे ही, अब महँगी कारें भी इनमें चलती नजर आती हैं। चार पर्व स्नानों के सकुशल संपन्न हो जाने से अब प्रशासन ने भी राहत की साँस ली है। राज्य सरकार द्वारा घोषित कुंभ का एक महीना बीतने के कगार पर है और कुंभ के शाही स्नान की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

कुंभ के दौरान अब अखाड़ों के निजाम भी बदल गए हैं। यहाँ नए पंच-परमेश्वर चुने जाने की परंपरा है। रमता पंच के साथ-साथ कुंभ में अखाड़ों के महंत भी बदल जाते हैं। पेशवाइयों के बाद जब रमता पंच अखाड़ों के भीतर प्रवेश करते हैं तो अखाड़ों की कमान इन पंचों के हाथ आ जाती है। कुंभ मेले के दौरान अखाड़ों की समस्त व्यवस्थाओं में रमता पंच प्रमुख भूमिका निभाते हैं। अखाड़ों के आचार्य महंत भी अपनी जगह बने रहते हैं लेकिन व्यवस्थाओं को अंतिम रूप रमता पंच ही देते हैं। अखाड़ों में चरण पादुका पर एकत्रित होने वाला धन रमता पंचों को ही सौंपा जाता है।

अखाड़ों के समस्त जखीरे पर रमता पंच का ही अधिकार हो जाता है। विभिन्न अखाड़ों के रमता पंच कुंभ से वर्षों पूर्व ही मूल मठों से कुंभनगरी के लिए रवाना हो जाते हैं। सफर करते हुए ये रमता पंच नगर के बाहर ही डेरा लगाते हैं। डेरे में रहने के दौरान रमता पंचों को अपना खर्च स्वयं उठाना पड़ता है। जैसे ही वे अखाड़ों में प्रवेश करते हैं सब कुछ उनके अधीन हो जाता है। अखाड़े के योद्धाओं का आपसी टकराव न हो इसकी कोशिशें भी जारी हैं।

वर्ष 1998 में हरिद्वार कुंभ में जूना अखाड़े व निरंजनी अखाड़े के साधु आपस में भिड़ गए थे। इस बार जूना अखाड़े की पेशवाई में निरंजनी अखाड़े के साधुओं ने पहुँचकर अपना बैर-विरोध मिटा देने के संकेत दिए हैं। सरकार स्वयं इसको लेकर संजीदगी दिखा रही है। महाकुंभ की सफलता के लिए उत्तराखंड सरकार साधु-संतों की छोटी से छोटी माँगों के प्रति भी संवेदनशील हैं।

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