adi shankaracharya jayanti : आदि शंकराचार्य, आधुनिक कार्यस्थल के लिए एक आध्यात्मिक लीडर

आदि शंकराचार्य की अद्वैतवाद, अनासक्ति और ध्यान पर केन्द्रित शिक्षाओं का भारतीय आध्यात्मिकता और दर्शन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। वे एक प्रभावी प्रबंधक भी थे जिन्होंने सम्पूर्ण भारत में कई मठ व्यवस्थाओं की स्थापना की। आइए, देखें कि उनकी नेतृत्व शैली को आधुनिक कार्यस्थल पर कैसे लागू किया जा सकता है।
आदर्श प्रस्तुत  करें: यथा राजा तथा प्रजाः। 
(जैसा राजा वैसी प्रजा)
आदि शंकराचार्य का मानना था कि एक अग्रणी को अपने अनुयायियों के अनुसरण के लिए एक आदर्श स्थापित करना चाहिए। उन्होंने स्वयं एक साधारण और तपस्वी जीवन व्यतीत किया और अपने शिष्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। एक आधुनिक प्रबंधक और लीडर के रूप में, आप अपनी टीम में जो व्यवहार और कार्यक्षमता देखना चाहते हैं, उसका प्रतिनिधित्व कर आप सफल नेतृत्व कर सकते हैं। फिर चाहे वह समय पर कार्य करना हो, सम्मानपूर्ण व्यवहार हो, या अन्य लोगों के विचार अपनाने की बात हो, आपका व्यवहार आपकी टीम के लिए उदाहरण पेश करता है।
आत्म-जागरूकता विकसित करें: आत्मवत् सर्वभूतेषु
(जो समस्त प्राणियों को दुख या आनंद में स्वयं के लिए समान रूप से देखता है, वह योगी आत्म-साक्षात्कार और परम शांति प्राप्त करता है।)
शंकराचार्य ने आत्मज्ञान के मार्ग के रूप में आत्म-जागरूकता और आत्म-साक्षात्कार के महत्व पर बल दिया। एक प्रबंधक और लीडर के रूप में, अपनी खुद की ताकत और कमजोरियों को समझने के लिए आत्म-जागरूक होना और इस बात से अवगत होना आवश्यक है कि आपका व्यवहार दूसरों को कैसे प्रभावित करता है। अपने कार्यों पर चिंतन करने के लिए समय निकालें और अपनी नेतृत्व शैली में सुधार के लिए दूसरों से प्रतिक्रिया लें और फिर सभी को समान समझें और पहचानें।
आलोचनात्मक सोच को सकारात्मक मानें: नयं चिन्तनं शीलस्य विवेको न च लभ्यते। 
(विवेचनात्मक सोच के बिना, किसी व्यक्ति का चरित्र विकसित नहीं होता है।) 
शंकराचार्य अन्य विद्वानों के साथ अपने दार्शनिक वाद-विवाद के लिए जाने जाते थे, और उन्होंने अपने शिष्यों को आलोचनात्मक सोच और बौद्धिक अन्वेषण में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित किया। एक आधुनिक लीडर के रूप में, आप खुले संवाद को प्रोत्साहित करके, विचारशील प्रश्न पूछकर और नए विचारों के लिए खुले रहकर अपनी टीम में आलोचनात्मक सोच की संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं।
मजबूत संबंध बनाएं: वसुधैव कुटुम्बकम 
(अच्छे लोगों की संगति सभी अच्छी चीजों की ओर ले जाती है।)
शंकराचार्य अपने शिष्यों और अनुयायियों के साथ मजबूत संबंध बनाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने एक सुदृढ़ समुदाय के निर्माण में विश्वास, सम्मान और आपसी सहयोग के महत्व पर जोर दिया। एक आधुनिक अग्रणी के रूप में, आप अपनी टीम के साथ सहानुभूति दिखाकर, सुलभ होकर और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देकर मजबूत संबंध बना सकते हैं और कार्यस्थल पर अपनेपन का भाव ला कर एक बेहतरीन संस्कृति विकसित कर सकते हैं।
सभी को सशक्त करें: शिष्यस्तु पूजनं, गुरु प्रसादात् 
(शिष्य की पूजा गुरु की कृपा और आशीर्वाद से होती है)
शंकराचार्य का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-साक्षात्कार और आत्मज्ञान की क्षमता होती है। उन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान प्राप्त करने और स्वयं को सशक्त बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। एक आधुनिक लीडर अपनी टीम को जिम्मेदारियां सौंपकर, विकास के अवसर प्रदान करके और उनकी उपलब्धियों पर प्रसन्न हो कर सभी को सशक्त बनाता है।
 
आदि शंकराचार्य की जयंती के इस शुभ अवसर पर, आइए, हम उनके द्वारा सिखाई गई कालजयी शिक्षाओं को आत्मसात करने और उन्हीं के पदचिन्हों पर आगे बढ़ने का संकल्प लें। हम स्वयं का सर्वश्रेष्ठ संस्करण बनने का प्रयास करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। 
 

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