Biography of Tukaram in Hindi : श्री संत तुकाराम महाराज महाराष्ट्र के महान संत और कवि माने गए हैं। उन्हें केवल वारकरी संप्रदाय का ही शिखर नहीं बल्कि दुनिया भर के साहित्य में भी उनकी जगह असाधारण है। आइए उनकी जयंती पर जानते हैं 5 रोचक बातें...
1. भारत के महान कवि तथा संत, श्री तुकाराम जी का जन्म पुणे के देहू कस्बे में सत्रहवीं सदी में हुआ था। उनके पिता छोटे-से काराबोरी थे। वे तत्कालीन भारत में चले रहे 'भक्ति आंदोलन' के एक प्रमुख स्तंभ थे। उन्हें 'तुकोबा' भी कहा जाता है। उन्होंने महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन की नींव डाली।
2. चैतन्य नामक साधु ने तुकाराम जी को 'रामकृष्ण हरि' मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया था। वे विट्ठल/ विष्णु के परम भक्त थे। तुकराम जी की अनुभव दृष्टि बेहद गहरी व ईशपरक होने के कारण यह भी कहा जा सकता है कि उनकी वाणी स्वयंभू, ईश्वर की वाणी थीं। वे कहते थे कि 'दुनिया में कोई भी दिखावटी चीज नहीं टिकती। झूठ लंबे समय तक संभाला नहीं जा सकता।' झूठ से सख्त परहेज रखने वाले तुकाराम को संत नामदेव का रूप माना गया है। जिनका समय सत्रहवीं सदी के पूर्वार्द्ध का रहा था।
3. संत तुकाराम के जीवन में एक समय ऐसा भी आया था, जब वे जिंदगी के पूर्वार्द्ध में आए हादसों से हार कर निराश हो चुके थे। जिंदगी से उनका भरोसा उठ चुका था। ऐसे में उन्हें किसी सहारे की बेहद जरूरत थी, लौकिक सहारा तो किसी का था नहीं। सो पाडुरंग पर उन्होंने अपना सारा भार सौंप दिया और साधना शुरू की, जबकि उस वक्त उनके गुरु कोई भी नहीं थे। उन्होंने विट्ठल/ विष्णु भक्ति की परपंरा का जतन करके नामदेव भक्ति की अभंग रचना की। तथा भगवान श्री विट्ठल के भक्त को वारकरी कहते हैं तथा इस संप्रदाय को वारकरी संप्रदाय कहा जाता है। 'वारकरी' शब्द में 'वारी' शब्द अंतर्भूत है। वारी का अर्थ है यात्रा करना, फेरे लगाना। जो अपने आस्था स्थान की भक्तिपूर्ण यात्रा बार-बार करता है, उसे वारकरी कहते हैं।
4. उनके जीवन के एक रोचक प्रसंग के अनुसार, एक बार की बात है तुकाराम जी अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला- गुरुदेव आप विषम परिस्थिति में भी इतने शांत और मुस्कुराते हुए कैसे रह पाते है, कृपया इसका रहस्य बताए? तुकाराम जी बोले- मैं इसलिए ये सब कर पाता हूं, क्योंकि मुझे तुम्हारा रहस्य पता है। शिष्य बोला- मेरा क्या रहस्य, गुरुदेव कृपया बताइए। संत तुकाराम जी दुखी होते हुए बोले- तुम अगले एक सप्ताह में मरने वाले हो। कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल देता, लेकिन स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था?
शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद लेकर वहां से चला गया। रास्ते में मन ही मन सोचा की अब बस केवल सात दिन ही रह गए है जीवन के गुरु जी द्वारा दी गई शिक्षा से शेष सात दिन विनय, प्रेम और प्रभु भक्ति में लगाऊंगा। और उसी समय से शिष्य का स्वभाव बदल गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और किसी पर भी क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। अपने जीवन में किए गए पापों का प्रायश्चित करता, जिन लोगो से उसने कभी मनमुटाव किया हो या दिल दुखाया हो उन सभी से सचे ह्रदय से क्षमा मांगता और पुनः अपने नित्य काम निपटा कर प्रभु स्मरण में लीन हो जाता। ऐसे करते हुए सातवां दिन आ गया तो शिष्य ने सोचा, मृत्यु पूर्व अपने गुरु के दर्शन कर लूं। इसके लिए वो तुकाराम जी से मिलने गया और बोला- गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिए।
संत तुकाराम जी बोले- मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र, शतायु भाव। गुरु के मुख से शतायु का आशीर्वाद सुनकर शिष्य चकित रह गया। तुकाराम जी ने शिष्य से पूछा- अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे? हाथ जोड़ते हुए शिष्य ने कहा- नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गंवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी। संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले- बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। मैं जानता हूं कि मैं कभी भी मर सकता हूं, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूं और यही मेरे क्रोध के दमन का रहस्य है..! शिष्य तुरंत समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन की अनमोल शिक्षा देने के लिए मृत्यु का भय दिखाया था, उसने गुरु की बात की गांठ बांध ली और फिर कभी भी क्रोध न करने का विचार करके खुशी-खुशी वहां से लौट गया।
5. संत तुकाराम के लिखे अभंग का अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद किया गया हैं। उनके काव्य साहित्य रत्नों का खजाना है। यही कारण है कि आज सैकड़ों वर्षों बाद भी वे आम आदमी के मन में सीधे उतरते हैं। वे अपने विचारों, अपने आचरण और अपनी वाणी से अर्थपूर्ण तालमेल साधते हुए अपनी जिंदगी को परिपूर्ण करने वाले तुकाराम जनमानस को कैसे जीना चाहिए, यही प्रेरणा देते हैं। ऐसे महान भारतीय कवि संत का देह परिवर्तन फाल्गुन कृष्ण द्वादशी शक संवत 1571 को हुआ था।
मृत्यु अटल है, जो लोग ये बात समझते हैं, वे हमेशा प्रसन्न और सकारात्मक रहते हैं। - संत तुकाराम
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