मात्र सात वर्ष की आयु में यज्ञोपवीत धारण करने के बाद 4 माह में ही वेद, उपनिषद आदि शास्त्रों का अध्ययन कर ग्यारह वर्ष की आयु में अपनी अद्भुत प्रतिभा का प्रमाण देते हुए दक्षिणांचल में विजय नगर के राजा कृष्णदेव की राज्यसभा में उपस्थित होकर संपूर्ण समुपस्थित विद्वानों को अपने अकाट्य प्रमाणों से पराजित कर उन्होंने निरुत्तर कर दिया था।
वेद, गीता, ब्रह्मसूत्र एवं समाधि भाषा को अपना प्रमाण मानते हुए भागवत धर्म का प्रचार किया। आचार्य महाप्रभु वल्लभाचार्य के दिव्य संदेश किसी जाति विशेष या धर्म विशेष के लिए न होकर प्राणीमात्र के कल्याण के लिए हैं।