तुलसीदास जयंती कब है? तुलसीदास के जीवन की 25 रोचक बातें

हर साल श्रावण माह शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसी दास जयंती मनाई जाती है। इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 15 अगस्त 2021, रविवार को तुलसीदास जयंती मनाई जाएगी। आओ जानते हैं उनके बारे में 25 रोचक जानकारियां।
 
 
1. तुलसीदासजी का जन्म संवत 1589 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान बांदा जनपद के राजापुर नामक गांव में हुआ था। हालांकि अधिकतर मत 1554 में जन्म होने का संकेत करते हैं। उनका जन्म स्थान कुछ लोग सोरो बताते हैं। उनका जन्म 1532 ईस्वी में हुआ और सन् 1623 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई।
 
2. जन्म लेते ही तुलसीदासजी के मुंह से राम का नाम निकला इसीलिए उनका नाम 'राम बोला' रखा गया।
 
3. राजपुर से प्राप्त तथ्‍यों के अनुसार वे सरयूपारी ब्राह्मण थे। वे गोसाईं समाज से संबंध रखते थे। 
 
4. कुछ प्रमाणों के अनुसार उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे था और भविष्य पुराण के अनुसार उनके पिता का नाम श्रीधर था। 
 
5. उनकी माता का नाम हुलसी बताया जाता है। 
 
6. भविष्य पुराण के अनुसार उनके गुरु राघवानंद, विलसन के अनुसार जगन्नाथ सोरों से प्राप्त प्रमाणों के अनुसार नरसिंह चौधरी और ग्रियर्सन एवं अंतर्साक्ष्य के अनुसार नरहरि उनके गुरु थे।
 
7. कहते हैं कि तुलसीदासजी का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। उनके जन्म लेने के बाद उनकी माता का देहांत हो गया था तो उन्हें मनहूस समझकर उनके पिता ने उन्हें छोड़ दिया था। 
 
8. पिता के छोड़े जाने के बाद तुलसीदासजी को एक गरीब महिला ने दूसरे गांव ले जाकर पाला। बाद में उस महिला का भी निधन हो गया तो पुरे गांव के लोग उन्हें मनहूस समझने लगे।
 
9. बहुत छोटे थे तब तुलसीदाजी अकेले रह गए थे और वे भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करते थे परंतु गांव के लोग उन्हें भिक्षा देने से कतराते थे।
 
10. कहते हैं कि एक बार माता पार्वती को उन पर दया आ गई और वे एक रात्रि को एक महिला का भेष धारण करके उनके घर में आई और भूखे तुलसीदासजी को चावल खिलाकर उन्हें अपना पुत्र समझ कर पाला।
 
11. भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से तुलसीदासजी का आगे का जीवन चला और उन्हें पालक के रूप में गुरु नरहरिदास मिले।
 
12. तुलसीदासजी को उनके गुरु ने पालपोस कर बड़ा ही नहीं किया बल्कि उन्हें शिक्षा और दीक्षा देकर विद्वान भी बनाया। काशी में इन्होंने परम विद्वान महात्मा शेष सनातनजी से वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि का ज्ञान अर्जित किया।
 
12. जब तुलसीदासजी बड़े हुए तो 29 वर्ष की आयु में उनका विवाह रत्नावली के साथ हो गया। तुलसीदासजी अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे, जिसके कारण उनकी राम भक्ति लगभग छूट जी गई थी। 
 
13. एक बार उनकी पत्नी मायके चली गई थी। उन्हें अपनी पत्नी की याद सताई तो वे बारिश और तूफान में भी रात को अपने ससुराल पहुंच गए। उनकी पत्नी को उनकी यह बात अच्‍छी नहीं लगी। उन्होंने कहा- 'लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ, अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता।।'' अपनी पत्नी की यह बात सुनकर तुलसीदासजी को बड़ा ही दुख हुआ। जिसके बाद उन्होंने प्रभु श्री राम के चरणों में ही अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
 
14. तुलसीदासजी ने अपने जीवन में कई स्थानों का भ्रमण किया था और लोगों को प्रभु श्री राम की महिमा के बारे में बताया था। 
 
15. भगवान शिव और हनुमानजी की कृपा से तुलसीदासजी ने 'रामचरित मानस' की रचना की। 
 
16. हनुमानजी की कृपा से ही एक बार तुलसीदासजी ने प्रभु श्रीराम के चित्रकूट के घाट पर दर्शन भी किए थे।
 
17. एक बार तुलसीदासजी की प्रभु श्रीराम की भक्त के चलते एक मृत व्यक्ति जिंदा हो गया था, जिसकी खबर बादशाह अकबर तक पहुंच गई थी। बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बंदी बनाकर बुला लिया और कहा कि तुम करिश्मा दिखाओ और मेरी प्रशंसा में ग्रंथ लिखो। तुलसीदाजी ने इसके लिए इनकार तक दिया तब बादशाह ने उन्हें जेल में डालने का आदेश दे दिया। उस वक्त तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा की रचना करके उसका पाठ किया तो हनुमानजी की कृपा से लाखों बंदरों ने अकबर के महल पर हमला कर दिया। बाद में अकबर ने तुलसीदासजी को मुक्त किया और उनसे माफी भी मांगी।
 
18. तुलसीदासजी ने अनेकों ग्रंथ और कृतियों की रचना की थी जिनमें से रामचरित मानस, कवितावली, जानकीमंगल, विनयपत्रिका, गीतावली, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण इनकी प्रमुख रचनाएं मानी जाती हैं। महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46वाँ स्थान दिया गया।
 
20. तुलसीदासजी ने अपने जीवन में समाज में फैली हुई कुरितियों के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा इन कुरितियों को दूर करने का प्रयास भी किया था। 
 
21. तुलसीदासजी ने अपनी सभी रचनाएं अवधी और ब्रज भाषा में लिखी।
 
22. तुलसीदास के जन्म को लेकर एक दोहा प्रचलित है।
पंद्रह सै चौवन विषै, कालिंदी के तीर,
सावन सुक्ला सत्तमी, तुलसी धरेउ शरीर।
 
इनकी मृत्यु के सन्दर्भ में भी एक दोहा प्रचलित है।
 
संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।।
 
23. तुलसीदासजी को आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है।
 
24. एक बार तुलसीदासजी  जगन्नाथपुरी यह समझकर गए थे कि वहां प्रभु श्रीराम का मंदिर होगा, परंतु वहां की मूर्तियों को देखकर वे बहुत निराश हुए और उन्होंने उन मूर्तियों के समक्ष झुकना अस्वीवार कर दिया। बाद में श्रीकृष्ण ने रामरूप में दर्शन दिए तब उनका भ्रम मिटा और पहली बार उन्हें समझ में आया कि श्रीकृष्ण ही मेरे राम हैं।
 
25. तुलसीदाजी ने भगवान शिव, हनुमानजी और माता पार्वती को साक्षात देखा था। जिन्होंने उनकी सहायता की थी।

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