दोस्तो, मैं राजस्थान की रहने वाली हूँ और मैंने संजय लीला भंसाली की देवदास फिल्म में "बैरी पिया" गीत से शुरूआत की थी। क्या तुम मुझे पहचान सकते हो? बिलकुल ठीक, मैं श्रेया घोषाल। तो परीक्षा के इन टेंशन वाले दिनों में मैं तुमसे अपने बचपन की बातें बताने आई हूँ। इससे तुम्हारा थोड़ा टेंशन भी कम हो जाएगा।
मैं राजस्थान की लड़की हूँ। राजस्थान में रावतभाटा है ना, वहाँ और कोटा में मेरा बचपन बीता। पिताजी भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम करते थे। मेरी स्कूल की पढ़ाई एटॉमिक एनर्जी सेंट्रल स्कूल कोटा से हुई। परीक्षा के दिनों में मुझे भी तुम्हारी तरह पढ़ने का बहुत टेंशन होता था पर गाने सुनते हुए पढ़ती जाती थी और खुद को रिलेक्स रखती थी। परीक्षा की तैयारी करते हुए भी थोड़ा समय अपनी रुचि की चीजों को देने पर पढ़ाई का ज्यादा टेंशन नहीं होता है। इस बात को याद रखना।
बचपन में जब मैंने संगीत की शिक्षा ली उन्हीं दिनों सा रे गा मा के चिल्ड्रंस स्पेशल एपिसोड में भाग लिया और जीती भी। यहाँ हमारे देश के महान संगीतकार कल्याणजी भाई (कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी वाले) जज थे और उन्हें मेरी आवाज पसंद आई। उन्होंने मुझे तकरीबन दो साल तक संगीत की शिक्षा दी।
दोस्तो, मैं लताजी को सुनकर बड़ी हुई हूँ और वे मेरी आदर्श हैं। लताजी ने जो गाने गाए हैं उनके आगे मैं तो बस सीख रही हूँ। बस यह सीखने की कोशिश तुम्हारी भी हमेशा चलती रहनी चाहिए।
संगीत की शिक्षा में यह समय मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा। बाद में उन्होंने मुझे मुंबई आ जाने की सलाह दी। और हम मुंबई आ गए। जब मैंने सा रे गा मा के दूसरे दौर में भाग लिया तो संजय लीला भंसाली को मेरी आवाज अच्छी लगी और उन्होंने मुझे अपनी फिल्म "देवदास" में गाने का मौका दे दिया। यह सबकुछ किसी जादू जैसे था। वरना कई लोगों को बहुत दिनों तक मेहनत करने के बाद भी फिल्मों में गाने का मौका नहीं मिलता है। पर अगर आप में प्रतिभा है तो देर-सवेर आपकी पहचान होती ही है। २००२ में देवदास के गाने के बाद तो मुझे कई जगह से ऑफर मिले और मैं प्लेबैक सिंगर बन गई। अब लगातार गा रही हूँ और सभी को पसंद भी आ रहा है।
जब मैं बहुत छोटी थी तब माँ से ही मैंने गाना सीखा। वे अच्छा गाती थीं। माँ मुझे कुछ गाने को कहती और मैं उसे दुहरा देती।
दोस्तो, खाने का मुझे बहुत शौक है पर खाना बनाने में कमजोर हूँ। मुझे घर का खाना ज्यादा अच्छा लगता है। बंगाली व्यंजन हो तो बस फिर क्या बात है। दोस्तो, मैं लताजी को सुनकर बड़ी हुई हूँ और वे मेरी आदर्श हैं। लताजी ने जो गाने गाए हैं उनके आगे मैं तो बस सीख रही हूँ। बस यह सीखने की कोशिश तुम्हारी भी हमेशा चलती रहनी चाहिए। जो सीखता है वही हर परीक्षा में सफल रहता है। तो तुम भी सीखते रहो और हर परीक्षा में तुम्हारी जीत होगी।