विक्रम साराभाई (dr. vikram sarabhai) का 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्म हुआ था। वह बहुत साधारण इंसान थे। जो भी उनसे मिलता था वह जरूर प्रभावित हो जाता था। इसमें उन्होंने 1966 से 1971 तक पीआरएल की सेवा की थी। वे भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले जनक और वैज्ञानिक थे। उन्हें विज्ञान में अत्यधिक रूचि थी। विक्रम साराभाई के द्वारा अंतरिक्ष को लेकर दिए गए योगदान को आज तक याद किया जाता है।
वह भारतीय अंतरिक्ष के जनक के रूप में जाने जाते हैं। भारत ने अंतरिक्ष को लेकर जो भी हासिल किया उसके पीछे विक्रम साराभाई का बहुत बड़ा योगदान है। आज वैज्ञानिक कई कार्य उनके नाम से करती हैं। विक्रम साराभाई के स्मृति में अंतरराष्ट्रीय खगोल संघ ने साल 1974 में अंतरिक्ष में 'सी ऑफ सेरनिटी' पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर को साराभाई क्रेटर नाम दिया था। इसरो की स्थापना विक्रम साराभाई ने की थी, जो विज्ञान के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलिब्ध है। इसरो ने भी चंद्रयान दो लैंडर का नाम बदलकर विक्रम रखा था।
विक्रम साराभाई ने मात्र 28 वर्ष की आयु में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की थी। यह उनका पहला कदम था। डॉ. विक्रम साराभाई का उच्च शिक्षा में भी योगदान रहा है। अहमदाबाद में अन्य उद्योगपतियों के साथ मिलकर उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद की स्थापना की है। यह इंस्टीट्यूट आज देश के टॉप इंस्टीट्यूट में शुमार है। इसके अलावा भी विक्रम साराभाई ने अन्य संस्थान और लैब की स्थापना की हैं।
1. भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद
2. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट (आईआईएम), अहमदाबाद
9. इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद
10. यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), जादूगुडा, बिहार
विक्रम साराभाई ने एक वाक्य कहा था, 'हमें अपने लक्ष्य पर कोई संशय नहीं है। हम चंद्र और उपग्रहों के अन्वेषण के क्षेत्र में विकसित देशों से होड़ का सपना नहीं देखते, किंतु राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मानव समाज की कठिनाइयों के हल में अति-उन्नत तकनीक के प्रयोग में किसी से पीछे नहीं रहना चाहते।
विक्रम साराभाई को भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए सन् 1966 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। ऐसे महान वैज्ञानिक का देहांत 30 दिसंबर 1971 को तिरुवनंतपुरम (केरल) के कोवलम में हुआ था।