10. कानपुर दंगों के दौरान उन्होंने सैकड़ों लोगों की जान बचाई और जब वे वहां फंसे लोगों को लॉरी में बिठा रहे थे, तभी वहां उमड़ी भीड़ में से ही किसी ने एक भाला विद्यार्थीजी के शरीर में घोंप दिया, लेकिन वे कुछ कर पाते, इसके पहले ही साथ ही उनके सिर पर लाठियों के कुछ प्रहार हुए और 25 मार्च 1931 को कानपुर में लाशों के ढेर में उनकी लाश मिली। तब उनकी लाश इतनी फूल गई थी कि लोग पहचान भी नहीं पा रहे थे। दंगे रोकते-रोकते ही उनकी मौत हुई थी, उनको 29 मार्च को अंतिम विदाई दी गई।