उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। परंतु मदनलाल प्रारंभ से ही क्रांतिकारी विचारधार के थे। इसी कारण उन्हें लाहौर के विद्यालय से निकाल दिया गया था। परिवार ने भी उनसे नाता तोड़ लिया था। तब उन्होंने एक लिपिक, एक तांगा चालक और एक मजदूर के रूप में काम करके अपना पेट पाला। जब वे एक कारखाने में मजदूर थे तब उन्होंने एक यूनियन बनाने का प्रयास किया, परंतु वहां से उन्हें निकाल दिया गया।
फिर वे मुम्बई में काम करने लगे और बाद में अपने बड़े भाई की सलाह और मदद के चलते सन् 1906 में वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड चले गए। जहां 'यूनिवर्सिटी कॉलेज' लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया। यही से उनके जीवन ने एक नया मोड़ लिया। लंदन में वे विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे राष्ट्रवादियों के संपर्क में आए।
उस दौरान खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से लंदन में पढ़ने वाले छात्र तिलमिलाए हुए थे और उनके मन में बदला की भावना थी।
फिर एक बार 1 जुलाई 1909 को 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' का लंदन में वार्षिक दिवस समारोह आयोजित हुआ जहां पर कई अंग्रेजों के साथ कई भारतीयों ने भी शिरकत की। यहीं पर अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों से जासूसी कराने वाले ब्रिटिश अधिकारी सर विलियम कर्ज़न वाइली भी पथारे थे। ढींगरा भी इस समारोह में अंग्रेजों को सबक सिखाने के उद्देश्य से गए थे। हाल में जैसे ही कर्ज़न वाइली ने प्रवेश किया तभी ढींगरा ने रिवाल्वर से उस पर 4 गोलियां दाग दीं। कर्ज़न को बचाने का प्रयास करने वाला पारसी डॉक्टर कोवासी ललकाका भी ढींगरा की गोलियों से मारा गया।