डॉ. राधाकृष्णन के तर्कपूर्ण हाजिर-जवाबी से पूरी दुनिया उनकी कायल थी। जब एक बार वे भारतीय दर्शन पर व्याख्यान देने इंग्लैंड गए, तब वहां बड़ी संख्या में लोग उनका भाषण सुनने आए थे, तभी एक अंग्रेज ने उनसे पूछा- क्या हिंदू नाम का कोई समाज, कोई संस्कृति है? तुम कितने बिखरे हुए हो? तुम्हारा एक सा रंग नहीं- कोई गोरा तो कोई काला, कोई धोती पहनता है तो कोई लुंगी, कोई कुर्ता तो कोई कमीज। देखो हम सभी अंग्रेज एक जैसे हैं- एक ही रंग और एक जैसा पहनावा। इतना सुनने के बाद राधाकृष्णन ने तत्काल उस अंग्रेज को जवाब दिया- घोड़े अलग-अलग रूप-रंग के होते हैं, पर गधे एक जैसे होते हैं। अलग-अलग रंग और विविधता विकास के लक्षण हैं। इस पर वहां उपस्थित सभी ने चुप्पी साध ली।