3. तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जाएंगे और तुम कूद कर सबके आगे पहुंच जाओगे। जो अपने उद्धार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोरगुल मचाओ कि उसकी आवाज दुनिया के कोने-कोने में फैल जाए। कुछ लोग ऐसे हैं, जोकि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नहीं चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढ़ो। इसके बाद मैं भारत पहुंच कर सारे देश में उत्तेजना फूंक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से सांप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पड़ेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दुनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते - तमाम संसार हिल उठता। क्या करूं धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है। तूफान मचा दो तूफान! (वि.स. 4/387)