गेम ऑफ थ्रोन्स का डायर वुल्फ 13,000 साल बाद जिंदा! DNA से हुआ चमत्कार, लेकिन क्या यह सही है?

क्या आपने "गेम ऑफ थ्रोन्स" में स्टार्क परिवार के विशालकाय डायर वुल्फ को देखकर कभी सोचा था कि ऐसा जीव सचमुच जिंदा हो सकता है? अब यह सपना हकीकत बन गया है! विलुप्त हो चुका डायर वुल्फ फिर से जिंदा हो गया है! 13,000 साल पहले धरती से गायब हुए इस विशालकाय भेड़िए को वैज्ञानिकों ने डीएनए की जादुई दुनिया के जरिए पुनर्जनन कर दिया है।

कोलॉसल बायोसाइंसेज़ के वैज्ञानिकों ने तीन ऐसे भेड़िया शावकों को जन्म दिया है, जिनमें डायर वुल्फ के जीन धड़क रहे हैं। छह महीने के तीन भेड़िया शावक—रोमुलस, रेमस और खलीसी—अब अमेरिका के उत्तरी जंगलों में कैद में सांस ले रहे हैं। इनके घने सफेद फर और विशाल शरीर देखकर हर कोई दंग है। लेकिन क्या ये वाकई वही डायर वुल्फ हैं या बस एक वैज्ञानिक प्रयोग की नकल?

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— Elon Musk (@elonmusk) April 7, 2025

डायर वुल्फ का पुनर्जन्म: कैसे हुआ चमत्कार? कोलॉसल बायोसाइंसेज नाम की कंपनी ने यह कमाल कर दिखाया। वैज्ञानिकों ने आज के ग्रे वुल्फ के DNA में 20 खास बदलाव किए। ये बदलाव डायर वुल्फ के बड़े आकार, सफेद फर और ताकतवर जबड़ों के लिए जिम्मेदार जीन से प्रेरित थे। फिर इस बदले हुए DNA से भ्रूण तैयार किए गए और एक कुतिया के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिए गए। नतीजा? तीन स्वस्थ शावक पैदा हुए—रोमुलस, रेमस और खलीसी। ये आम ग्रे वुल्फ से 20% बड़े हैं, इनका फर चमकदार सफेद है और इनकी ताकत देखते ही बनती है। "न्यूयॉर्क टाइम्स" के कार्ल जिमर की रिपोर्ट के मुताबिक, ये भेड़िए 13,000 साल पहले विलुप्त हो चुके डायर वुल्फ की "कार्यात्मक प्रतिकृति" हैं।



क्या होता है डायर वुल्फ? अगर आपने "गेम ऑफ थ्रोन्स" देखा है, तो आप डायर वुल्फ को जरूर जानते हैं—विशालकाय, शक्तिशाली और डरावना, जिसके साथ स्टार्क परिवार की कहानी शुरू होती है। असल जिंदगी में भी डायर वुल्फ कोई काल्पनिक जीव नहीं था। यह एक विशाल भेड़िया था, जो आज के ग्रे वुल्फ से कहीं बड़ा और ताकतवर था। इसके जबड़े इतने मजबूत थे कि यह हड्डियों को चबा सकता था, और इसका सफेद, घना फर इसे बर्फीले जंगलों का राजा बनाता था। अब वैज्ञानिकों ने इसे फिर से जिंदा कर दुनिया को चौंका दिया है।

असली हैं या नकल: वैज्ञानिक साफ कहते हैं कि ये शावक 100% डायर वुल्फ नहीं हैं। इनके पास डायर वुल्फ के सभी 2,000 जीन नहीं हैं, जो इसे पूरी तरह परिभाषित करते थे। साथ ही, इनका पालन-पोषण जंगल में नहीं, बल्कि कैद में हो रहा है। इसे "कार्यात्मक प्रतिकृति" कहकर वैज्ञानिक इसकी सीमाएं बता रहे हैं। फिर भी, इनके सफेद फर और विशाल शरीर को देखकर कोई भी कह सकता है कि ये डायर वुल्फ के बेहद करीब हैं।

डीएनए का कमाल : कैसे हुआ पुनर्जनन? कोलॉसल बायोसाइंसेज़ के वैज्ञानिकों ने ग्रे वुल्फ के डीएनए को अपनी प्रयोगशाला में लिया और उसमें 20 खास जेनेटिक बदलाव किए। ये बदलाव उन जीनों से जुड़े थे, जो डायर वुल्फ को उसका विशाल आकार, सफेद फर और ताकतवर जबड़े देते थे। इसके बाद, इस बदले हुए डीएनए से भ्रूण तैयार किए गए और उन्हें एक कुतिया में प्रत्यारोपित किया गया। तीन स्वस्थ भेड़िया शावक—रोमुलस, रेमस और खलीसी—जिनका जन्म छह महीने पहले हुआ। ये शावक आम ग्रे वुल्फ से 20% बड़े हैं, इनका फर सफेद और घना है, और इनके जबड़े डरावने रूप से मजबूत हैं।

Naming the first direwolf khaleesi was certainly a decision ! pic.twitter.com/eWPSj4UJWP

—  (@thetowerofjoy) April 7, 2025

तकनीक से लौटेंगी खोई हुई प्रजातियां : कोलॉसल बायोसाइंसेज का दावा है कि यह तकनीक सिर्फ डायर वुल्फ तक सीमित नहीं रहेगी। उनका बड़ा लक्ष्य है विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाना। मिसाल के तौर पर अमेरिका की लाल भेड़िया प्रजाति खतरे में है। कंपनी ने इसके लिए चार क्लोन भी बनाए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यह तकनीक कामयाब रही, तो भविष्य में डोडो पक्षी या मैमथ जैसे अन्य विलुप्त जीवों को भी वापस लाया जा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह तकनीक भविष्य में प्रकृति को फिर से संतुलित करने में मदद कर सकती है।

क्यों हो रहा विवाद : हालांकि हर कोई इस प्रयोग से खुश नहीं है। कुछ वैज्ञानिक इसे "बचपन के सपनों का खेल" कहकर तंज कस रहे हैं। डॉ. जूली मीचेन ने चेतावनी दी, "यह सुनने में जादुई लगता है, लेकिन हमारे पास जो भेड़िए अभी हैं, उन्हें बचाने में हम नाकाम हो रहे हैं। पहले उन्हें संभालें, फिर सपनों की दुनिया में जाएं।" आलोचकों का कहना है कि ऐसे प्रयोगों पर पैसा और समय बर्बाद करने से बेहतर है कि मौजूदा प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया जाए।

Why not focus on conserving species which are going to be extinct rather than calling a 20 edit wolf, a direwolf. https://t.co/GG900gQXpO

— Dr. Rishikesh Balvalli (@PathoGuy) April 9, 2025

इन तीन शावकों—रोमुलस, रेमस और खलीसी—के नाम "गेम ऑफ थ्रोन्स" और रोमन इतिहास से प्रेरित हैं, जो इस प्रयोग को और रोचक बनाते हैं। लोग इसे साइंस और फंतासी का अनोखा मेल बता रहे हैं। कोई इसे "विज्ञान की जीत" कह रहा है, तो कोई "प्रकृति के साथ छेड़छाड़" करार दे रहा है। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है—क्या इंसान को विलुप्त प्रजातियों को फिर से जन्म देने का हक है?

यह प्रयोग महज एक शुरुआत हो सकता है। अगर कोलॉसल की तकनीक कामयाब रही, तो भविष्य में डोडो पक्षी, मैमथ से लेकर खतरनाक डायनॉसोर जैसी दूसरी विलुप्त प्रजातियां भी जंगल में लौट सकती हैं, लेकिन सवाल यह है— क्या हम प्रकृति के इस नए खेल को संभाल पाएंगे, या यह अनजाने में कोई नई मुसीबत खड़ी कर देगा? डायर वुल्फ का यह पुनर्जन्म विज्ञान की दुनिया में हलचल मचा रहा है और दुनिया सांस थामे देख रही है कि आगे क्या होता है! यह प्रयोग विज्ञान की दुनिया में एक मील का पत्थर है, लेकिन यह सवाल भी उठाता है—क्या हमें अतीत को वापस लाने की कोशिश करनी चाहिए, या वर्तमान को बचाने पर ध्यान देना चाहिए?

क्या डायर वुल्फ का पुनर्जनन विज्ञान की जीत है, या प्रकृति के साथ अनावश्यक खिलवाड़? इस सनसनीखेज खबर ने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया है। अब देखना यह है कि यह प्रयोग भविष्य को नई दिशा देगा, या विवादों में उलझकर रह जाएगा। आप क्या सोचते हैं, हमें जरूर बताएं!

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