आखिर क्या राज है तैरने वाले पत्थरों का? क्या सचमुच वे आज भी पाए जाते हैं? हिन्दू ग्रंथ 'वाल्मीकि रामायण' में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीराम ने लंका पहुंचने के लिए वानर सेना से एक सेतु अर्थात पुल बनवाया था। नल और नील नाम के दो वानर यूथों की देखरेख में बने इस पुल के पत्थरों पर 'राम' का नाम लिखने से वे सभी पत्थर पानी में तैरने लगते थे। आओ जानते हैं कि तैरने वाले इन पत्थरों का रहस्य क्या है?
भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् के धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम में मन्नार द्वीप के पम्बन के मध्य समुद्र में लगभग 3 किलोमीटर चौड़ी पट्टी और करीब 48 किलोमीटर लंबाई के रूप में उभरे एक भू-भाग को रामसेतु कहा जाता है। रामसेतु पर कई शोध हुए हैं। कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम् से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया। 1480 ईस्वी सन् में यह चक्रवात के कारण टूट गया और समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण यह डूब गया।
पम्बन द्वीप पर स्थित और पम्बन नहर के द्वारा भारत के मुख्य पर्वतीय भाग से विभाजित रामेश्वरम् एक छोटा-सा कस्बा है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि आज भी रामेश्वरम् के आसपास ऐसे 'तैरने वाले पत्थर' पाए जाते हैं। इसके साथ ही आज भी भारत के कई साधु-संतों के पास इस तरह के पत्थरों को देखा जा सकता है। चार धामों से एक रामेश्वरम् की यात्रा पर आप जाएं तो इन पत्थरों को जरूर देखें।
आखिर पत्थर के तैरने का रहस्य क्या है? आप यह जानने के लिए उत्सुक होंगे तो चलिए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य। दरअसल, तैरने वाला यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है। ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है। यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पांजी प्रकार का आकार देता है। प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा भरी रहती है, जो इसे पानी से हल्का बनाती है जिसके कारण यह डूबता नहीं है।