दुनिया की वो प्रयोगशाला, जहां प्राण लौट आने की उम्मीद में रखे हैं कई शव
अमेरिका में एक प्रयोगशाला में मृत लोगों (Dead) के शरीर और उनके अंगों को संरक्षित किया जा रहा है.
चिकित्सा विज्ञान ने जीवन को लंबा खींचने की कई तरह की तकनीक आ चुकी है। लेकिन अब एक ऐसी तकनीक पर भी काम किया जा रहा है, जो मर चुके आदमी को जिंदा करने की उम्मीद से काम कर रही है।
अमेरिका में यह नया ट्रेंड है, मर जाने के बाद शव के रूप में खुद को सहेजे रखना, इस उम्मीद और प्रतीक्षा में कि किसी दिन हम वापस जिंदा हो सकते हैं। फिलहाल अमेरिका की हाई प्रोफाइल सोसायटी में ये सनक जागी है, धीरे धीरे पूरे अमेरिका में इसकी चर्चा है।
इस तकनीक को क्रायोनिक्सकहा जा रहा है, आइए जानते हैं कैसे यह तकनीक काम करने वाली है और लोग इससे क्या उम्मीद लगाए बैठे हैं।
दरअसल, अमेरिका (USA) के एरिजोना प्रांत में एक प्रयोगशाला में मृत लोगों के शरीर को खास तकनीक से भविष्य के लिए सुरक्षित रखा जा रहा है, कहा जा रहा है कि इस पर काम कर रहे तकनीक के विकसित होने पर उन्हें इन शवों को फिर से जिंदा किया जा सके।
अब अमेरिका में यह चलन बन रहा है, खासतौर से अमीर लोग इस पर यकीन कर के मोटी रकम भी खर्च कर रहे हैं। अमेरिका में इस तकनीक की चर्चा होने के बाद कई लोग इसे जानना और समझना चाहते हैं। दिलचस्प बात है कि लोग अपने मृत परिजनों और रिश्तेदारों के शवों में ऐसी प्रयोगशालाओं में रखने भी लगे हैं।
क्या है Cryonics तकनीक?
अमेरिका में लोग अपने मृत शरीर को एक खास तरह की प्रयोगशाला में सुरक्षित रखवा रहे हैं, इसी तकनीक को क्रायोनिक्स कहा जा रहा है। इस तकनीक में शरीर या उसके अंगों को बहुत ही ज्यादा ठंडे तापमान में लंबे समय के लिए रखा जाता है। इसमें मृत व्यक्ति के शरीर को बर्फ की तरह जमा कर उस समय तक रखा जाएगा जब तक कि एडवॉन्स तकनीक से लोगों का जीवन फिर से लौटाया जा सकेगा।
उद्योग की तरह पनप रही जिंदा होने की तकनीक
अमेरिका के स्कॉट्सडेल में एक प्रयोगशाला में मानवशरीर और उनके अंगों को सुरक्षित रखा जा रहा है और इसके लिए ग्राहक भी कम नहीं हैं। कमाल की बात तो यह है कि यह एक उद्योग के तौर पर अमेरिका में पसर रहा है।
हाई प्रोफाइल ग्राहक ने बढाया मार्केट
जहां तक शवों को फिर से जिंदा करने के दावे की बात है तो इस व्यवसाय के लोग मानते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य में वाकई इस तरह से लोगों को फिर से जिंदा किया ही जा सकेगा।
इस तरह से शरीर को सुरक्षित और संरक्षित रखने के प्रक्रिया को चिकित्सा जगत में संदेह की निगाह से देखा जा रहा है और आलोचना भी की जा रही है। लेकिन क्रायोनिक्स को मानने वालों में बहुते से हाई प्रोफाइल ग्राहक भी हैं और मौत के बाद के जीवन के लिए जोखिम लेने को तैयार है। इन्हीं लोगों की वजह से इस तकनीक का एक तरह से मार्केट तैयार हो गया है।
कैसे काम करती है क्रायोनिक्स तकनीक?
इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों का प्रयास मौत के बाद जल्दी से जल्दी शरीर को संरक्षित करने का होता है। उनका इरादा जितना संभव हो शरीर की हर कोशिका को संरक्षित करना होता है। इसके लिए वे शरीर को या फिर उस अंग को जिसे संरक्षित करना हो, -196 डिग्री सेंटीग्रेड में जमा कर रखते हैं।
इसके विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों का उद्देश्य शरीर में विघटन या विखंडन की प्रक्रिया को जहां तक संभव हो रोकना होता है। इसके लिए उससे पहले एक खास द्रव शरीर के अंदर संचारित करते हैं जो ठंडा होने के साथ फैलता है और शरीर के अंदर विघटन की प्रक्रियाओं को जारी रहने से रोक देता है। इस पूरी प्रक्रिया को क्रायोप्रिजर्वेशन कहते हैं।
1967 में संरक्षित किया था पहला शव
यह तकनीक आज से नहीं बल्कि काफी पहले से चर्चा में है। क्रायोनिक प्रक्रिया के तौर पर लोग इसके बारे में जानते भी हैं। इसके तहत पहला शरीर जो क्रायोनिक पद्धति से गुजरा था, वह 1967 में संरक्षित किया गया था। आज यह प्रक्रिया एक व्यवासाय और उद्योग का रूप ले रही है। एल्कोर (ALCOR) कंपनी के सीएओ मैक्स मोर का कहना है,
हम जो पेशकश कर रहे हैं, वह वापस आने का केवल एक मौका भर है और अनंत जीवन का मौका है, यह सौ साल का भी हो सकता है या फिर हजार साल का भी हो सकता है
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
इस तकनीक पर काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि विज्ञान की दुनिया में बहुत ही अप्रत्याशित उपलब्धियां हासिल हुई हैं।
100 साल पहले चांद पर जाने की बात कपोल कल्पना लगती थी। लेकिन यह संभव हुआ। ज्यादा पहले नहीं 1950 के दशक तक ही लोग मृत घोषित किए जाते थे तब हमें नहीं मालूम होता था कि हमें उनके साथ क्या करना है। अब सीपीआर से उन्हें वापस जिंदा करने के प्रयास हो रहे हैं।
कितना खर्च होता है इसमें?
इस प्रक्रिया के लिए केवल पूरे शरीर ही संरक्षित नहीं किया जाता है। बल्कि शरीर के कुछ खास अंग खासतौर से मस्तिष्क को संरक्षित किया जाता है। इसके अलावा भ्रूण, या मृत शिशु भी संरक्षित किए जाते हैं। यहां तक की मानव स्पर्म या अंडों का भी संरक्षण किया जाता है। पूरे शरीर को संरक्षित रखने की कीमत 2 लाख अमेरिकी डॉलर है तो वहीं केवल दिमाग को संरक्षित करवाने में 80 हजार डॉलर का खर्चा आएगा।