ब्रह्मपुत्र नदी पर चीनी बांध से भारत को बड़ा खतरा...

सोमवार, 24 नवंबर 2014 (12:07 IST)
चीन द्वारा तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए गए देश के सबसे बड़े हाइड्रोपावर स्टेशन ने रविवार से काम करना शुरू कर दिया। इस निर्माण से भारत और बांग्लादेश में बहने वाली इस महत्वपूर्ण नदी में जल का प्रवाह प्रभावित हो सकता है। चीन द्वारा इस विशाल जलसंपदा को नियंत्रित किय जाने से ब्रह्मपुत्र का पानी इन दोनों देशों में भीषण बाढ़ व भूस्‍खलन ला सकता है। जिसका सीधा परिणाम होगा कि भारतीय उप  महाद्वीप में रहने वाले करोड़ों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।
 
जानिए कैसा है यह निर्माण : 1.5 अरब डॉलर की लागत से आठ साल में निर्मित जांगमू हाइड्रोपावर स्टेशन की पहली जनरेटिंग यूनिट समुद्र की सतह से 3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी पांच अन्य बिजली उत्पादन इकाइयों के निर्माण का काम अगले साल पूरा हो जाएगा। इन छह यूनिटों के पूरी तरह शुरू होने पर विशाल परियोजना की कुल स्थापित क्षमता 5.10 लाख किलोवॉट होगी। 

चीन ने यह जल विद्युत परियोजना 2.5 अरब किलोवॉट सालाना बिजली पैदा करने के लिहाज से बनाई है। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि तिब्बत की प्रति व्यक्ति बिजली खपत 2013 में 1,000 किलोवाट से थोड़ी अधिक थी, जो राष्ट्रीय औसत से एक तिहाई कम है। स्टेट ग्रिड तिब्बत इलेक्ट्रिक पावर कंपनी के ल्यू श्योमिंग ने बताया कि यह पनबिजली स्टेशन तिब्बत की ऊर्जा कमी को दूर करेगा।
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चीन ने इस परियोजना की शुरुआत की घोषणा करते हुए कहा कि इससे जांगमू नदी के जल संसाधन का समुचित उपयोग हो सकेगा और बिजली की किल्‍लत वाले इस इलाके में विकास की धारा बह सकेगी। लेकिन इस भारत के लिए इस बांध के बेहद दूरगामी परिणाम होंगे। तिब्बत में एशिया की कई महत्वपूर्ण नदियों का उद्गम है और प्राप्त जानकारी के अनुसार जांगमु के अलावा चीन भी कुछ और बांध बना रहा है।  उल्लेखनीय है कि अरूणाचल प्रदेश में भी चीन ऐसे कई बांध बना चुका है और अब भी बना रहा है। 
हालांकि चीन ने नदी परियोजनाओं पर भारत की आशंकाओं को दूर करने की इच्छा जताई है और कहा कि उसका उद्देश्य जल प्रवाह रोकना नहीं है। इस मुद्दे पर भारतीय विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने भी कुछ दिन पहले बयान दिया था कि ब्रह्मपुत्र नदी घाटी क्षेत्र पर एक व्यापक अध्ययन किया जाएगा।
 
लेकिन खुद तिब्बत में ही इन बांधों को लेकर कई आशंकाएं हैं क्योंकि इससे हिमालयी क्षेत्र के नाजुक पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है। नेपाल और हिमालयीन क्षेत्रों में बसे भारतीय पहाड़ी राज्यों में पिछले कुछ सालों में कई बड़े हादसे भी हो चुके हैं ऐसे में चीन या किसी भी देश द्वारा इस तरह के निर्माण कार्यों की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। 

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