अमेरिका के मुताबिक, इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है कि चीन को लगा होगा कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी की आड़ में गुपचुप ढंग से पाकिस्तान को मदद पहुंचाना आसान रहेगा। साल 1983-84 तक अमेरिका को पता चल चुका था कि चीन-पाकिस्तान परमाणु सहयोग की जड़ें बहुत गहरी हैं।